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तीर्थंकरों की मूर्तियों पर उकेरित चिह्न : १३३
के सम्पादक स्वर्गीय प्रोफेसर आदिनाथ उपाध्ये द्वारा लगभग छठी सदी निकाली गयी है।
इन परिस्थितियों में दोनों सम्प्रदायों के द्वारा प्रदत्त लांछनों के सूची की तुलना करना आवश्यक है। परिशिष्ट में दी गयी सूची से ज्ञात होता है कि हेमचन्द्र के अनुसार चौदहवें जिन अनन्तनाथ का लांछन श्येन या बाजपक्षी (falcon) है जो अन्तर के बिन्दुओं को दर्शाता है। यह दिगम्बर परम्परा के अनुसार है। दसवें जिन शीतलनाथ का हेमचन्द्र के अनुसार लांछन श्रीवत्स है किन्तु दिगम्बरों के अनुसार स्वस्तिक (तिलोयपण्णत्ति) या श्री-द्रुम (प्रतिष्ठासारोद्धार) है। पुनः अरनाथ, अठारहवें जिन का लांछन दिगम्बर परम्परा में मत्स्य है किन्तु श्वेताम्बर सम्प्रदाय के अनुसार नन्द्यावर्त है।
चूँकि दोनों जिन सम्प्रदायों में से किसी में भी लांछनों के लिये सर्वपूर्व उपलब्ध साहित्यिक उद्गम उनके मूल के पश्चात् का है और चूँकि उनकी सूचियों में कुछ अन्तर (भिन्नताएँ) है, हमें लांछनों के मूल स्रोत के काल के बारे में शुद्ध हल तक पहुँचने हेतु पुरातात्त्विक साक्ष्य को भी खोजना चाहिए। जहाँ तक साहित्यिक साक्ष्य के विश्लेषण का सम्बन्ध है, यह काल कम से कम मूर्ति पूजा के सम्बन्ध में दोनों सम्प्रदायों के अंतिम रूप से जुदा (अलग) होने के काल के समसामयिक होना चाहिए, और यह काल (युग) जैसा कि मैंने अन्यत्र दिखलाया है, पांचवीं सदी के अंतिम चतुर्थांश के आसपास होना चाहिए। यह काल द्वितीय वलभी परिषद् (council) के निकट कहीं होना चाहिए। अन्यथा सामान्य सहमति (concordance) संतुष्टि पूर्वक समझायी नहीं जा सकती है। यह काल सम्भवत: दो भिन्न सूचियों के अंतिम निर्णय का होना चाहिए न कि आवश्यक रूप से लांछनों की अवधारणाओं के उद्गम का। यह निम्नलिखित परिचर्चा से और अधिक स्पष्ट हो जायेगा।
अभी तक ज्ञात, सर्वपूर्व मूर्तिशिल्प, राजगिर से प्राप्त नेमिनाथ का मूर्ति शिल्प है जिसकी पादपीठ पर लांछन है, जिसे सर्वप्रथम रामप्रसाद चंदा द्वारा प्रकाशित किया गया है। इसका सिर अलग कर दिया गया है तथा बुरी तरह विरूपित (deface) कर दिया गया है, किन्तु मूर्ति शिल्प का शेष भाग भलीभाँति सुरक्षित है। पादपीठ के केन्द्र में एक युवा व्यक्ति किसी आयताकार चक्र के समक्ष खड़ा है, दोनों गुप्त काल की अचूक शैली में सुंदरतापूर्वक उकेरे गये हैं। प्रत्येक बाजू में एक शंख है जो दोनों सम्प्रदायों के अनुसार नेमिनाथ का
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