________________ श्रमण, वर्ष 57, अंक 3-4 जुलाई-दिसम्बर 2006 पार्श्वनाथ विद्यापीठ के प्राङ्गण में पार्श्वनाथ विद्यापीठ में "श्रमण परम्परा का भारतीय संस्कृति एवं पर्यटन को अवदान' विषयक त्रिदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न ___ वाराणसी। 23-25 दिसम्बर, 2006, संस्कृति मन्त्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली के सहयोग से पार्श्वनाथ विद्यापीठ एवं क्षेत्रीय सांस्कृतिक केन्द्र (संस्कृति विभाग), वाराणसी के संयुक्त तत्त्वावधान में "श्रमण परम्परा का भारतीय संस्कृति एवं पर्यटन को योगदान'' विषयक एक त्रिदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी में किया गया जिसमें देश के कोने-कोने से लगभग 50 विद्वानों ने भाग लिया। संगोष्ठी का उद्घाटन भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के सदस्य सचिव प्रो० एस० आर० व्यास ने किया। आपने अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में संस्कृति के संरक्षण में आम जन एवं युवा बुद्धिजीवियों की भागीदारी पर जोर देते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति एवं पर्यटन का विकास विभिन्न संस्कृतियों के पारस्परिक सहयोग एवं उनके अच्छे गुणों के ग्रहण एवं बुराइयों के त्याग से ही सम्भव है। विद्यापीत एवंटीग भारतिक केन्द्र सरकांत विभाग यारावास यमा परम्पराका भारतीय संस्क्रति टन को अवदान / चाळनाथ SATH Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org