Book Title: Sramana 2006 07
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 223
________________ 216 : श्रमण, वर्ष 57, अंक 3-4 / जुलाई-दिसम्बर 2006 पत्र प्रस्तुत किये। जो विद्वान इस संगोष्ठी में उपस्थित रहे उनमें मुख्य हैं- स्वामी वेद भारती, डा० नामवर सिंह, डा० जे० बी० शाह, प्रो० दयानन्द भार्गव, प्रो० क्रिस्टोफर के० चैपेल, प्रो० लारा कार्नेल, प्रो० पिओत्र बल्कोविज, समणी मल्लिप्रज्ञाजी, प्रो० विमला कर्णाटक, प्रो० कोकिला शाह, प्रो० शशिप्रभा कुमार तथा समणी मंगलप्रज्ञा आदि। प्राकृत भाषा के संवर्धन में वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय, आरा (बिहार) का सराहनीय योगदान प्राकृत भाषा और उसका बहुविध साहित्य संस्कृत, हिन्दी तथा अन्य आधुनिक भाषाओं के बीच की कड़ी रही है। प्राकृत भाषा में जहां जैन साहित्य के समस्त मूलग्रंथ निबद्ध हैं वहीं उच्चकोटि के धर्म-निरपेक्ष साहित्य भी हैं / किन्तु इस भाषा का दुर्भाग्य रहा है कि इसे वह प्रतिष्ठा नहीं मिली जिसकी यह अधिकारिणी है। यह इसी से स्पष्ट हो जाता है कि यह विषय आज भी / संघलोक सेवा आयोग तथा कई प्रदेशों की राज्य लोक सेवा आयोग की परीक्षा के लिये चयनित विषयों में अपना स्थान नहीं बना सका। बिहार प्रदेश के कई विश्वविद्यालयों में इस विषय की पढ़ाई इन्टरमीडिएट स्तर तथा (स्नातक महाविद्यालयों में) विश्वविद्यालय स्तर पर सन् 1955-56 से हो रही है। किन्तु अपरिहार्य कारणों से बिहार इण्टरमीडिएट शिक्षा परिषद् से प्राकृत का नाम हटा दिया गया था। कुछ विद्वानों के अथक प्रयासों के कारण पुन: प्राकृत को एक विषय के रूप में प्रतिष्ठापित किया जा सका। वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय के प्राकृत एवं जैन शास्त्र विभागाध्यक्ष प्रो० रामजी राय ने इस प्राकृत भाषा को उसका उचित स्थान एवं सम्मान दिलाने का बीडा उठाया है। इस कार्य में उन्हें विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो० रामपाल सिंह, प्रतिकुलपति प्रो. देवमुनि प्रसाद तथा उनके सहयोगियों- प्रो० चन्द्रदेव राय, प्रो० जटाशंकर ठाकुर, डा० कामिनी सिन्हा, प्रो० श्रीराम ओझा, प्रो० रामजनम शर्मा, प्रो० सुदर्शन मिश्र आदि का उन्हें पूरा समर्थन मिल रहा है। प्रो० राय ने अपने सद्प्रयासों से प्राकृत को कई महाविद्यालयों में नये विषय के रूप में मान्यता दिलाकर प्राकृत का पठन-पाठन प्रारम्भ करवाया है। प्रो० रामजी राय इस सद्कार्य हेतु बधाई के पात्र हैं। Jain Education International nal For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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