Book Title: Sramana 2006 07
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 226
________________ पार्श्वनाथ विद्यापीठ के प्राङ्गण में : 219 संगोष्ठी के मुख्य अतिथि श्री वी० वी० सिंह विश्वेन, मण्डलायुक्त वाराणसी ने कहा कि श्रमण परम्परा के मूल्य एवं आदर्श आज के सामाजिक अन्तर्द्वन्द्वों से निपटने एवं अच्छे समाज के निर्माण में अत्यन्त प्रभावी हो सकते हैं। वर्तमान समय में व्याप्त भय एवं असन्तोष के वातावरण में श्रमण दर्शन एक नई रोशनी दिखा सकता है जिसके लिए हम बुद्धिजीवियों को आगे आना होगा। संगोष्ठी का विषय प्रवर्तन करते हुए प्रो० सागरमल जैन, सचिव, पार्श्वनाथ विद्यापीठ ने कहा कि भारतीय संस्कृति के वास्तविक स्वरूप को समझने के लिए अन्य संस्कृतियों के पारस्परिक आदान-प्रदान के पक्षों को सही ढंग से उद्घाटित करना होगा। प्रोफेसर जैन ने कहा कि श्रमणों का मुख्य कार्यक्षेत्र ही पर्यटन रहा है जिसमें चातुर्मास को छोड़कर वर्ष के शेष आठ महीनों में प्रत्येक श्रमण को निरन्तर भ्रमणशील रहने का विधान किया गया है जिससे उनके मन में आसक्ति का त्याग हो और देश की विभिन्न भाषाओं एवं लोक संस्कृतियों को जानने और समझने का अवसर प्राप्त हो सके। विशिष्ट वक्ता के रूप में जैन विश्व भारता संस्थान, लाडनूं, (राजस्थान) के पूर्व कुलपति प्रो० रामजी सिंह ने वाराणसी को भगवान शिव, महात्मा बुद्ध एवं भगवान पार्श्वनाथ की त्रिवेणी से सम्बोधित करते हुए श्रमण परम्परा, वैदिक संस्कृति एवं लोकायत की त्रिवेणी को भारतीय संस्कृति का मूलाधार बताया। प्रो० सिंह ने इस बात पर जोर दिया कि हठधर्मिता और कट्टरवाद भारतीय संस्कृति एवं दर्शन के कभी भी वाहक नहीं बन सके, इसीलिए सापेक्षतावाद के सिद्धान्त पर चलकर ही सामाजिक वर्ग संघर्ष से मुक्ति एवं व्यक्ति के नैतिक जीवन का विकास किया जा सकता है। व्यक्ति को ज्ञान क्षेत्र की तरह भाव क्षेत्र में भी सापेक्षता का सिद्धान्त अपनाना होगा, क्योंकि आग्रहपूर्वक विचारों की अभिव्यक्ति ही हिंसा है और जैन दर्शन तथा गाँधी दर्शन ने अहिंसा का संदेश देकर समाज को एक नई दिशा दी है जिसकी वर्तमान विश्व को सबसे अधिक जरूरत है। उद्घाटन सत्र में पाँच महत्त्वपूर्ण जैन ग्रन्थों-Universal Massage of Lord Mahavira by Shri Dulichand Jain, Kanayapahuda (English Translation), Advance Glossary of Jaina Terms by Dr. N. L. Jain, Jaina Philosophy of Language by Dr. Sagarmal Jain, तथा मध्यकालीन हिन्दी जैन साहित्य पर जैन दर्शन का प्रभाव, द्वारा- डा० बी० रमेश गदिया, का विमोचन किया गया। संस्थान तथा संगोष्ठी का परिचय एवं स्वागत करते हुए संस्थान के कार्यकारी निदेशक डॉ० श्रीप्रकाश पाण्डेय ने उत्तर प्रदेश में 18 तीर्थंकरों की महत्त्वपूर्ण जन्मस्थली के कारण इसे सांस्कृतिक पर्यटन के मानचित्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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