________________ पार्श्वनाथ विद्यापीठ के प्राङ्गण में : 221 'उड़ीसा की श्रमण परम्परा के स्थापत्य कला का योगदान -उदयगिरि एवं खण्डगिरि की गुफाओं के विशेष सन्दर्भ में), डॉ० अशोक कुमार सिन्हा (पश्चिमी मिथिला की श्रमण परम्परा का पार्यटनिक वैभव - दशा एवं दिशा), डा० विजयकान्त दुबे (जैन दर्शन का पारिस्थितिकीय योगदान), डा० अजय कुमार गौतम (भारतीय संस्कृति में जैन शिक्षा का अवदान), डा० विजय कुमार (ऐकान्तिक धारणाएं और स्याद्वाद), डा० विनोद कुमार तिवारी (भारत की सांस्कृतिक यात्रा में श्रमण संस्कृति का अवदान), डा० डी० एन० प्रसाद (त्रिरत्न: भारतीय संस्कृति को जैन परम्परा का अवदान सर्वोदय और सम्पूर्ण क्रान्ति के विशेष सन्दर्भ में), डा० शारदा सिंह (जैन धर्म में सामाजिक मूल्य), तथा डा० अनेकान्त कुमार जैन (काशी में जैन पर्यटन की सम्भावनायें), आदि। संगोष्ठी में विद्वानों द्वारा निम्न प्रस्ताव पारित कर उसे संस्कृति मन्त्रालय को भेजने की संस्तुति की गयी सांस्कृतिक पर्यटन के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु प्रस्ताव 1. श्रमण परम्परा की समृद्ध विरासत को देखते हुए बौद्ध परिपथ की ही तरह जैन परिपथ का विकास किया जाय और दोनों का संयुक्त नामकरण करते हुए "सांस्कृतिक परिपथ' नाम दिया जाय। 2. सांस्कृतिक अस्मिता की रक्षा एवं पर्यटकों के लिये आकर्षण के प्रमुख केन्द्र के रूप में "श्रमण ग्राम' की स्थापना उसी प्रकार की जाय जैसे लंदन में "सेक्सपीयर ग्राम" की स्थापना की गयी है। इस श्रमण ग्राम में कौसाम्बी, संकिसा, मथुरा, अयोध्या, गोरखपुर एवं वाराणसी के जैन तीर्थों का माडल बनाकर उसे एक ही जगह पर प्रदर्शित किया जाय। 3. सभी धार्मिक एवं सांस्कृतिक पर्यटन के स्थलों पर पर्यटकों से शासकीय कोश की समृद्धि हेतु टिकट की दर विकसित तीर्थों की अपेक्षा अविकसित तीर्थस्थलों पर कम रखी जाय जिससे अधिक से अधिक पर्यटक सुविधाजनक ढंग से इन स्थलों पर भ्रमण कर सकें। सभी प्रमुख स्थानों पर शासन की ओर से श्रमण संस्कृति के माध्यम से सांस्कृतिक पर्यटन को बढावा देने के उद्देश्य से होर्डिंग्स, ब्रोशियर एवं अन्य सूचनापरक प्रकाशनों की व्यवस्था प्राथमिकता पर कराई जाय। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org