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१४६ : श्रमण, वर्ष ५७, अंक ३-४ / जुलाई-दिसम्बर २००६
एवं भव्य शंखेश्वर तीर्थ की प्रतिकृति "श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ जिनालय' तथासराफा का जैन श्वेताम्बर मंदिर आराधना एवं उपवास का सुखद वातावरण प्रस्तुत करते हैं। इन सभी मंदिरों से जबलपुर की महत्ता और भी अधिक बढ़ जाती है।
इन सभी मंदिरों में सराफा स्थित श्री शीलतनाथ प्रभु का श्वेताम्बर जैन मंदिर अपने शिल्प और स्थापत्य की वजह से जबलपुर का गौरव प्रतीत होता है। करीब १३० वर्ष प्राचीन इस मंदिर में लगभग ४४० वर्ष पुरानी कसौटी पाषाण की प्रभु श्री शीतलनाथ की प्रतिमा मूलनायक के रूप में स्थापित है। यहाँ प्रति वर्ष माघ शुक्ल त्रयोदशी को मंदिर का प्रतिष्ठा महोत्सव बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है।
जबलपुर के श्वेताम्बर जैन धर्मावलंबियों की यह भावना थी कि श्री शीतलनाथ प्रभु के १३० वर्ष प्राचीन इस जिनालय का जीर्णोद्धार कराकर एक ऐसे भव्य मंदिर का निर्माण कराया जाय जो वास्तुकला की दृष्टि से तो अनुपम हो ही, साथ ही साथ दार्शनिक स्थलों की सूची में जबलपुर के इतिहास के पन्नों में इसका नाम भी शामिल हो और यह विदेशी पर्यटकों के लिये पर्यटन स्थल बने। इसी दृष्टि से श्री श्वेताम्बर जैन ट्रस्ट के अन्तर्गत ही मंदिर जीर्णोद्धार कार्य को पूर्ण करने के निमित्त "श्री शीतलनाथ जिनालय निर्माण समिति बनी
और १६ अप्रैल १९८४ को इस जिनालय के जीर्णोद्धार हेतु भूमि पूजन का कार्य कराया गया।
वर्ष १९८४ से जिनालय का निर्माण कार्य प्रारम्भ हुआ और पूरे होने तक श्री शतिलनाथ प्रभु जिनालय का बाहरी निर्माण वंशी पहाड़पुर राजस्थान के गुलाबी बलुए पत्थर से किया गया है। जब कि मंदिर के अन्दर की भित्ति मकराने के श्वेत संगमरमर से बनी है।
धरातल से ५१ फुट ऊँचे, ७५ फुट लम्बे तथा ५५ फुट चौड़े इस मंदिर के पाँच भाग हैं- गर्भ गृह, कौली मण्डप, गूढ़ मण्डप, शृंगार चौकी तथा चौकी। मंदिर के सभी स्तम्भों पर तीर्थंकरों की मंगल प्रतिमायें चांवरधारी, दिक्पाल और विद्या देवियाँ उत्कीर्णं हैं। जिनालय के निर्माण में राजस्थान के विश्वप्रसिद्ध राणकपुर तीर्थ के मंदिर की स्थापत्य और शिल्प के अनुरूप नक्कासी कोरनी के भव्य कलात्मक कार्य को स्थान दिया गया है। मंदिर का शिखर आबू के - दिलवाड़ा मंदिर के समान है। शिखर के पैनल में २४ तीर्थंकर और देवता हैं।
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