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श्रमण, वर्ष ५७, अंक ३-४॥
जुलाई-दिसम्बर २००६
कला की अनुपम कृति जबलपुर का श्री शीतलनाथ मंदिर
कृष्णमुरारी पाण्डेय नर्मदा के प्राकृतिक सौन्दर्य के किनारे बसा और जाबालि ऋषि के नाम से पूर्व में जाबालिपुर और कालान्तर में जबलपुर के नाम से मशहूर इस नगरी की सजीव संस्कृति को देखकर संत विनोबा भावे ने इसे इतिहास के पन्नों पर "संस्कारधानी' से विशेषालंकृत किया है। रानी दुर्गावती १६वीं शताब्दि में यहाँ की रानी हुईं जिन्होंने इस नगरी को काफी विकसित किया। एशिया का सबसे बड़ा दूरसंचार प्रशिक्षण केन्द्र, अस्त्र-शस्त्र बनाने वाले सुरक्षा संस्थान, सिग्नल्स का नेशनल हेडक्वार्टर, पिशनहारी की मड़िया, नंदीश्वर द्वीप, संगमरमरी चट्टानों के मध्य से बहने वाली नर्मदा के प्राकृतिक सौन्दर्य जबलपुर की निजी विशेषता
___जबलपुर विद्या और संस्कृति का केन्द्र तो है ही, साथ ही साथ सम्पूर्ण भारत का भौगोलिक केन्द्र भी है। साहित्य मनीषी श्री माखनलाल चतुर्वेदी, सुभद्राकुमारी चौहान; रामेश्वर शुक्ल अंचल, हरिशंकर परसायी, व्याकरणाचार्य श्री कामता प्रसाद सिंह, आचार्य रजनीश और महर्षि योगी आदि जैसी विभूतियाँ इस नगरी में हुई। ____ करीब १६ लाख की आबादी वाली इस नगरी में लगभग ७५ हजार जैन हैं जिसमें मात्र बारह-तेरह सौ की आबादी में ही श्वेताम्बर समाज है। फिर जबलपुर जैन संस्कृति का पोषक रहा है। जबलपुर में जैन श्वेताम्बर और दिगम्बर समाज के ऐसे अनेक जिनालय हैं जो श्रद्धालुओं को अपूर्व शांति और आत्मिक उत्थान देते हैं। इनमें मिलौनीगंज का श्री वंशीलाल ड्योढिया का व्यक्तिगत दिगम्बर जैन मंदिर, पुरानी बजाजी स्थित श्री नेमिनाथ मंदिर और दिगम्बर जुग मंदिर, सदर बाजार स्थित श्वेताम्बर समाज का मंदिर, सिम्पलेक्स स्थित नूतन * पूर्व शोधछात्र, प्रा.भा.इ.सं एवं पुरातत्त्व विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय।
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