________________
श्रमण, वर्ष ५७, अंक ३.४
जुलाई-दिसम्बर २००६
तीर्थंकरों की मूर्तियों पर उकेरित चिह्न
डॉ० उमाकान्त पी. शाह अनुवादक - प्रोफेसर लक्ष्मी चन्द जैन
विभिन्न तिर्थंकरों की मूर्तियाँ उनकी पादपीठ के नीचे उकेरित किये गये लांछन (cognizance) या चिह्न की सहायता से पहचानी जाती हैं। दिगम्बर एवं श्वेताम्बर, दोनों सम्प्रदायों द्वारा ऐसे लाक्षणिक प्रतीकों की सूची दी गयी है। किन्तु, किसी भी पूर्व-ग्रंथों में ये नहीं पाये गये हैं। इन लांछनों की सूची न तो किन्हीं आगमों (Canonical texts) में, न तो कल्पसूत्र में जिसमें चौबीस जिनों का जीवन वृत्तान्त दिया है, न नियुक्तियों में और न ही चूर्णियों में दी गई है। केवल आवश्यक नियुक्ति में एक स्थान पर इस तथ्य का निर्देश दिया गया है कि ऋषभ नाम इसलिये रखा गया क्योंकि उनके उरुओं (thighs) में ऋषभ (bull) का चिह्न (sign) था। परन्तु उसमें अन्य जिनों के कोई भी लांछन नहीं दिये गये हैं। यह नियुक्ति, जो आज उपलब्ध है, दूसरी या तीसरी सदी के पूर्व की मान्य नहीं है। लगभग पांचवी सदी का ग्रंथ 'वसुदेवहिण्डी', जिसमें अनेक तीर्थंकरों (उदाहरणार्थ- ऋषभनाथ, कुंथुनाथ, अरनाथ एवं अन्य) का जीवन चरित्र दिया गया है, में भी उनके लांछनों का कोई उल्लेख नहीं है। दिगम्बरों में भी पूर्व के ग्रन्थों, जैसे जटासिंहनन्दि के वरांगचरित्र (लगभग छठीं सदी) में, या जिनसेन (लगभग ७५०-८४० ईस्वी पश्चात्) और उनके शिष्य गुणभद्र (लगभग ८३० A.D.) के क्रमशः आदिपुराण और उत्तरपुराण में अथवा जिनसेन (७८३ ईस्वी सन् ) के हरिवंश में, अथवा रविषेण (६७६ A.D.) के पद्मचरित्र में ये सूचियाँ नहीं दी गई हैं। तिलोयपण्णत्ति (चतुर्थ या पांचवीं सदी) में एक सूची दी गयी है, किन्तु वह आज प्राप्य (उपलब्ध) ग्रंथ में बाद में हुए अंतःप (interpolation) रूप दिखाई देता है, जैसा कि इस तथ्य से स्पष्ट है कि एक स्थान पर उसमें बालचन्द्र सैद्धान्तिक का संदर्भ आया है। इसलिये तिलोयपण्णत्ति का साक्ष्य सावधानी से व्यवहृत किया जाना है। इस वर्तमान ग्रन्थ की तिथि, इस ग्रन्थ * ५५४, सराफा, जबलपुर-४८२००२
।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org