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१३८ : श्रमण, वर्ष ५७, अंक ३-४ / जुलाई - दिसम्बर २००६
१३. विमलनाथ
१४. अनन्तनाथ
१५. धर्मनाथ
१६. शान्तिनाथ
१७. कुन्थुनाथ
१८. अरनाथ
शूकर, वाराह श्येन या बाज (श्वे),
सेही (? ति.प.) या ऋक्ष दिग.) १३
वज्र
हिरण
मेढ़ा
नन्द्यावर्त (श्वे.), मत्स्य (अन्य दिग.),
तगर कुसुम ( ति.प. ) १४
कुम्भ
कछुवा
नील कमल
१९. मल्लिनाथ
२०. मुनिसुव्रत नाथ २१. नमिनाथ
२२. नेमिनाथ
शंख
२३. पार्श्वनाथ
सर्प
२४. महावीर
सिंह
( अहिंसा वायस - ३ जुलाई १९८९ )
सन्दर्भ
१. आवश्यक निर्युक्ति, गाथा १०८०, आवश्यक निर्युक्ति पर हरिभद्र की वृत्ति, पृ.
५०२,
२. तिलोयपण्णति (TP, 4. 605) का तगर कुसुम, प्रतिष्ठासारोद्वार का तगर । तिलोय पत्ति के सम्पादकों ने तगरकुसुम का अर्थ मत्स्य से लिया है जो दिगम्बर कन्नड, इत्यादि पर आधारित टी. एन. राम चंद्रन के ग्रंथ तिरुप्परुत्तिकुनरम् और उसके मंदिर (Tirupparutti and its temples) में पृष्ठों १९२-१९४ पर दी गयी सारणी पर आधारित है।
३. A.S.I., A.R., 1925-26. पृ. १२५-२६ प्लेट 1 vi, b. Shah, UP, Studies in Jaina Art (P.V.R.I. Banaras, 1955), प्लेट VII.
४. स्थानांग सूत्र ४, सू. ३०७, जीवाभिगम सूत्र, सू. १३७, पृष्ठ २२५ एवं
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अनुगामी।
५. जीवाभिगम सूत्र १३९, पृ. २३२-३३ दिगम्बर परम्परा के अनुसार विभिन्न स्थलों पर सिद्धायतनों के लिये, देखिये हरिवंश, ५-६, पृ. ७०.१४० ६. देखिए
वृषोगजोऽश्वः प्लवगः क्रौञ्चोऽब्जं स्वस्तिकः शशी । मकरः श्रीवत्सः शड्गी महषिः शूकरस्तधा ॥४७॥ कूयेनो वज्रं मृगश्छागो नन्द्यावर्ते घटोऽपि च । कुर्मो नीलोत्पलं शङ्खः फणी सिंहोऽर्हता ध्वजाः ॥४८॥
अभिधान चिंतामणि I. 47-48
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