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अनेकान्तवाद एवं उसकी प्रासंगिकता : ६३
'है कि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र आदि जातियाँ समाज में व्यक्तियों के जन्म के आधार पर नहीं बनी हैं, बल्कि उनके कर्म एवं स्वभाव के आधार पर ही समाज में इस प्रकार की जातियों का विभाजन हुआ है।
अतः जैन-दार्शनिकों के अनुसार किसी भी प्राणी के द्वारा दूसरे प्राणी का शोषण, निर्दलन या स्वायत्तीयकरण अन्याय है। उसी प्रकार किसी देश या राष्ट्र को अपने अधीन करना, उसे अपना उपनिवेश बनाना मूलत: गलत है। समाज या राष्ट्र की सम्पत्ति पर सभी व्यक्तियों का समान अधिकार है।
इस प्रकार जैन-दार्शनिक एक सर्वोदयी समाज की रचना चाहते हैं। सर्वोदय का अर्थ है सभी प्राणियों का उदय होना। वह किसी व्यक्ति या सम्प्रदाय विशेष के उदय से सन्तुष्ट नहीं होता। आचार्य समन्तभद्र ने कहा है- “जो समस्त जीवों का हितकारक हो वही सर्वोदयतीर्थ है।" सर्वोदय के लिए दो बातें आवश्यक हैं- मिथ्याग्रहों से दूर रहना और सभी को आत्मवत् समझना।
__ जैन-दार्शनिक यह युक्ति देते हैं कि यदि किसी को अपना दुःख प्रिय न हो तो उसे यह भी समझना चाहिए कि दूसरों को भी अपना दु:ख प्रिय नहीं लगता। अतएव समस्त जीवों को अपने समान समझकर अत्यन्त आदर भाव से उनपर दया भाव रखना चाहिए। यही सर्वोदय का सिद्धान्त है। ___व्यक्ति की मुक्ति, सर्वोदयी समाज के निर्माण और विश्वशान्ति के लिए जैन दर्शन के पुरस्कर्ताओं ने यही विचार भारतीय संस्कृति के आवृत्तात्मिक कोषागार में आत्मोत्सर्ग और निर्ग्रन्थता की तिल-तिल साधना करके संजोये हैं। आज वह धन्य हो गया है कि उसकी उस अहिंसा, अनेकान्त-दृष्टि और अपरिग्रह की भावना की ज्योति से विश्व का हिंसान्धकार समाप्त होता जा रहा है और सब सबके उदय में अपना उदय मानने लगे हैं।११ ___अहिंसा का बौद्धिक पक्ष अनेकान्त है। राग-द्वेष जन्य संस्कारों के वशीभूत न होकर एक-दूसरे की दृष्टि बिन्दुओं को ठीक-ठीक समझने का नाम ही तो अनेकान्त है। जैनों का विचार सही है कि जब तक मनुष्य अपने ही मन्तव्य अथवा विचार को सर्वथा ठीक समझता रहता है, अपनी ही बात को परम सत्य माना करता है, तब तक उसमें दूसरे के दृष्टिकोण को समझने की उदारता नहीं आ सकती। फलतः वह अपने को सच्चा और दूसरे को सर्वथा मिथ्यावादी समझ बैठता है। अतः आज जो परिवारों में लड़ाई-झगड़े और कलह-क्लेश हैं, सार्वजनिक क्षेत्र में क्रूरता का वातावरण है, अन्तर्राष्ट्रीय वातावरण में जो तनाव है, वह एकान्त दृष्टि को अपनाने के कारण ही है।
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