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अनेकान्तवाद - एक दृष्टि : ६९
को आत्मा समझकर “मैं दुःखी हूँ”, “मैं सुखी हूँ” आदि अनुभव करता है । जीव जगत् का भोक्ता है तथा सांसारिक होने के कारण बन्धनजन्य दुःख का भोग करता है। ईश्वर नित्य, शुद्ध, बुद्ध और मुक्त है। यह कथन कि जीव ब्रह्म बन जाता है उपचार मात्र है, क्योंकि वस्तुतः जीव सदा ही ब्रह्म है, जीवत्व अविद्याजन्य भ्रान्ति है। बंधन और मोक्ष दोनों व्यावहारिक हैं, परमार्थिक नहीं हैं। जीव का जन्म-मरण, उत्पत्ति - विनाश का संस्मरण अविद्याकृत है। जब तक अविद्या है तभी तक जीव का जीवत्व है। अद्वैतवेदान्त के अनुसार जीव अज्ञान है। अविद्या की दृष्टि है। अतः जीव का कारण अज्ञान है। अविद्या निवृत्त होते ही जीव अपने शुद्धात्मस्वरूप में प्रकाशित होता है। अद्वैतवेदान्त में एक ही नित्य - कूटस्थ विशुद्ध विज्ञान स्वरूप परमात्मा तत्त्व है और यह विज्ञान धातु अविद्या से अनेक रूपों में भासित होता है तथा इनके अतिरिक्त अन्य कोई तत्त्व नहीं है। शंकराचार्य के अनुसार ईश्वर सृष्टि का निमित्त और उपादान दोनों कारण है। जीव चेतन है और शरीर का स्वामी है, जीव ही प्राणों को धारण करता है। ईश्वर और जीव का भेद स्पष्ट करने के लिए वेदान्त में बिम्ब - प्रतिबिम्ब की उपमा दी गयी है। मुण्डकोपनिषद् में जीव और ईश्वर का भेद बतलाते हुए कहा गया है कि ईश्वर - जीव समान आख्यान वाले दो पक्षी एक ही वृक्ष का आश्रय लिये रहते हैं। एक भोक्ता है, दूसरा द्रष्टा है अर्थात् जीव स्वादिष्ट कर्मफल का भोग करता है और दूसरा भोग न करने के कारण देखता है। इस प्रकार जीव और ईश्वर में व्यावहारिक दृष्टि से भेद अवश्य है, परन्तु पारमार्थिक दृष्टि से दोनों एक हैं।
इस दर्शन पर यह आक्षेप किया जा सकता है कि यदि आत्मा ब्रह्म स्वरूप है और सदा मुक्त है तो वह जगत् के बन्धन में क्यों फँस जाती है? यदि जगत् बिल्कुल भ्रमात्मक है तो यह मुक्त अनन्त अज्ञानवाद सत्ता को कैसे बाधित कर सकता है ? अतः शांकर वेदान्त एक दृष्टि से ही सत्य प्रतीत होता है, अन्य दृष्टि से सत्य प्रतीत नहीं होता ।
द्वितीय दृष्टि के उदाहरण के रूप में माध्यमिक सम्प्रदाय को लिया जा सकता है। यह सम्प्रदाय यह मानता है कि दृष्टियाँ सापेक्षतः सत्य हैं तथा निरपेक्षतः असत्य अथवा शून्य है । दृष्टियाँ चार हैं- १. सत् २. असत् ३. सत्असत् ४. न सत् न असत् । तत्त्व इन चारों कोटियों से शून्य हैं। माध्यमिक के अनुसार बुद्धि की कोटियाँ जिन्हें दृष्टि, अन्त, विकल्प और कल्पना भी कहा जाता है- वह चार है जिसमें प्रथम दो मुख्य तथा अन्तिम दो गौण हैं। प्रथम
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