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दुःख का कारण कमी नहीं कामना : ११५
सुख
- सामग्री : प्राचीन एवं अर्वाचीन काल में
आइए, उपर्युक्त तथ्यों को समझने के लिय प्राचीन और अर्वाचीन काल में उपलब्ध सुख - सामग्री पर विचार करें। प्राचीन काल के सम्राटों, सेठों या सामान्य-जन के पास भूमि, भवन, पशु, मुद्रा, सोना, चाँदी, रत्न आदि धनवैभव आज से किसी प्रकार कम नहीं था। परन्तु यदि धन वैभव प्राप्ति का प्रयोजन इन्द्रिय-सुख - भोग की सामग्री पाना माना जाय तो कहना होगा कि प्राचीनकाल के सम्राट की अपेक्षा वर्तमान काल के साधारणजन को इंद्रिय सुख - भोग की सामग्री प्राचीन काल के लोगों की अपेक्षा प्रचुररूप में उपलब्ध है। अतः आज का मानव प्राचीन काल के मानव से अधिक सुखी होना चाहिए, परन्तु वह अधिक दुःखी है। इस विसंगति का कारण तब और अब की सुखोपभोग की वस्तुओं में खोजा जा सकता है
यदि खाद्य पदार्थ को लें तो संख्या व स्वाद इन दोनों दृष्टियों से पहले से अधिक परिमाण वाले सुस्वादु खाद्य पदार्थ आज जनसाधारण को सहज उपलब्ध हैं।
आँखों द्वारा भोग्य दृश्य वस्तुओं को लें तो उस समय सम्राट को केवल अपने राज्य में स्थित महल या बाग-बगीचे आदि ही देखने को मिलते थे जो अति सीमित होते थे, परन्तु आज तो चित्रपट एवं इन्टरनेट पर दुनियां भर के समस्त प्राकृतिक स्थान, विशाल भवन, बड़े - बड़े नगर आदि कुछ मिनटों में ही देखे जा सकते हैं। पहले सम्राट पूरे जीवन में जितनी वस्तुएँ नहीं देख पाते थे उससे कहीं अधिक आज का साधारण गरीब व्यक्ति भी चित्रपट तथा अन्य आधुनिकतम साधनों पर देख लेता है।
कर्ण द्वारा भोग्य पदार्थों को लें तो वाद्य - ध्वनियाँ, संगीत आदि सुनने के लिए सम्राट को गायक व गायिकायें रखनी पड़ती थीं जो समय-समय पर ही निश्चित राग-रागिनियाँ व गाना सुना सकते थे परन्तु आज रेडियो, टेलीवीजन के माध्यम से नित नये संगीत सुने जा सकते हैं तथा ये सबके लिए सुलभ भी हैं।
मनोरंजन के अन्य साधन जो प्राचीन समय में उपलब्ध थे उनसे कई गुना नये साधन आज उपलब्ध हैं।
सम्राटों के वस्त्र जो इस समय अजायबघरों में रखे हुए हैं। उनको आज किसी भिखारी को पहना दिए जांय और उन्हें दो-चार दिन पहने रहने को कहा
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