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११६ : श्रमण, वर्ष ५७, अंक ३-४ / जुलाई-दिसम्बर २००६ जाय तो वह भी इस सजा से छुटकारा पाने के लिए आपसे प्रार्थना करने लगेगा। • कारण कि वे कपड़े इतने भारी भरकम व शरीर के लिए असुविधाजनक हैं कि आज का साधारण मानव भी उन्हें पहनना पसन्द नहीं कर सकता।
आज वस्त्रों में हर प्रकार के वस्त्र उपलब्ध हैं जिनकी वेरायटी एवं गुणवत्ता में प्राचीन समय के वस्त्रों से कथमपि तुलनीय नहीं है।
यातायात की सुविधा को लें तो पहेल सम्राट को एक सौ मील भी जाना होता तो कम से कम दो दिन लगते थे। घोड़े, हाथी, ऊँट पर बैठ कर जाना पड़ता था जिससे उसका वहाँ सुरक्षित पहुचँना ही बहुत बड़ी बात थी, परन्तु आज कोई भी आदमी ट्रेन एवं वायुयान में बैठ कर या सोता हुआ कुछ ही घंटों में बिना थके हजारों मील निश्चित सुरक्षापूर्वक ऐसे पहुँच जाता है जैसे घर में ही बैठा हुआ हो।
पहले किसी का कोई परिजन परदेश चला जाता तो हजारों रुपये खर्च करने एवं महीनों बीत जाने पर भी उसका संदेश प्राप्त करना शक्य नहीं था। आज विश्व के किसी देश के किसी कोने में बैठे व्यक्ति का संदेश- पत्र एवं ' बातचीत कुछ मिनटों में टेलीफोन, फैक्स, मोबाइल, इन्टरनेट के माध्यम से शक्य है। सूचना एवं जनसम्पर्क में अभूतपूर्व क्रान्ति हुई है।
तात्पर्य यह कि भौतिक विज्ञान ने आज एक साधारण व्यक्ति को भी सुख की इतनी प्रचुर सामग्री प्रस्तुत कर दी है जितनी पुराने युग में अशोक, अकबर आदि महान् सम्राटों को भी उपलब्ध नहीं थी।
यदि सुख की साधन-सामग्री बढ़ने से व्यक्ति सुखी होता तो प्राचीन सम्राटों से आज के साधारण व्यक्ति के पास अधिक सुख सामग्री उपलब्ध होने के कारण अधिक सुखी होना चाहिए और आज के सम्पत्तिवान एवं सत्ताधारी तो इससे भी सैकड़ों गुना अधिक सुखी होने चाहिए परन्तु बात ठीक उल्टी है। आज बड़े से बड़े सम्पत्तिवान व सत्ताधारी को इतना अधिक दुःख व अशांति है कि उसे दुःख भुलाने के लिए शराब आदि नशीली वस्तुओं का सेवन करना पड़ता है। इस अवांछनीय दुःखद स्थिति में उत्पत्ति के रहस्य को ढूढने के लिए पुराने सम्राटों और अब के व्यक्तियों के जीवन पर दृष्टिपात करें।
सम्राट अशोक और अकबर के पास धन संपत्ति का अभाव न होने पर भी आज जैसे पंखे, रेडियो, टेलीफोन, टेलीविजन, कार, वायुयान आदि सुख
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