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दुःख का कारण कमी नहीं कामना : १२१
'क' अपने कार्यालय में बैठा है और कार किसी मेहमान को लेने स्टेशन गयी है और वहाँ कार में किसी प्रकार आग लग जाती है और कार जल जाती है, कार न रही; परंतु 'क' को अबतक कोई सूचना नहीं मिली, अत: उसे कोई दुःख नहीं हुआ। यदि कार के न होने से 'क' को दुःख होता तो कार के जलते ही दुःख होना चाहिये था। इससे यह परिणाम निकलता है कि कार के न होने से 'क' के दुःख का कोई सम्बन्ध नहीं है।
अतः कामना की पूर्ति से प्राप्त सम्बन्धित वस्तु या पदार्थ के साथ सुख का कोई सम्बन्ध नहीं है। सुख का सम्बन्ध मन में रहे हुए राग-द्वेषमयी मान्यता से है और कामनापूर्ति से होने वाला सुख कामना के अभाव से हुआ है। उसकी उस समय वही स्थिति हो गयी, जो कामना - उत्पत्ति से पूर्व थी अर्थात् कामना का अभाव हो गया। कामना के अभाव होने से चित्त शान्त हो गया । चित्त की शान्ति से सुख मिला।
तात्पर्य यह है कि सुख कामनापूर्ति में नहीं है- कामना के परित्याग या अभाव में है जो दुःख का मूल है
कामना
दुःख का मूल है। कामनापूर्ति में सुख तो है ही नहीं, साथ ही कामनापूर्ति तथा इन्द्रियजन्य सुख ही संसार के समस्त दुःखों और बुराइयों को उत्पन्न करनेवाला भी है। यथा
(१) सुख-क्षीणता, (२) शक्ति - क्षीणता, (३) अभाव, (४) जड़ता (मूर्च्छा), (५) आकुलता, (६) पराधीनता, (७) नश्वरता, ९८) नीरसता, (९) अतृप्ति, (१०) रोगोत्पत्ति, (११) वियोग का दुःख आदि उत्पन्न करता है।
सुखक्षीणता - इन्द्रिय-सुख प्रतिक्षण क्षीण होता है । ऊपर के उदाहरण में ही कार के मिलने का जो सुख तत्काल मिला, वह सुख एक घंटे पीछे न रहा। दूसरे दिन पहले दिन - जितना न रहा और अन्त में वह कार उस के नित्यप्रति के उपयोगी सामान्य वस्तुमात्र की तरह रह गयी और कार से मिलनेवाला सुख सूख गया। इस प्रकार कार का सुख क्षण - प्रतिक्षण घटता ही गया।
दूसरा उदाहरण लें। एक गरीब व्यक्ति तीन दिन का भूखा है, उसे किसी ने निमन्त्रण दिया और बादाम का हलवा परोसा। उसने जिंदगी में कभी हलवा ही नहीं खाया था। अतः उसे बादाम का हलवा बड़ा स्वादिष्ट लगा, बड़ा सुख हुआ। परंतु ज्यों-ज्यों वह ग्रास लेता गया त्यों-त्यों सुख में कमी होती गयी और एक ऐसी स्थिति आ गयी कि कोई उसे हलवा परोसना चाहता है तो वह
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