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अनेकान्तवाद-एक दृष्टि : ७३ द्वितीय दृष्टि के उदाहरण के रूप में मार्क्सवाद को लिया जा सकता है। मार्क्सवाद परिस्थितियों को ज्यादा महत्त्व देता है। सामाजिक परिस्थितियाँ मनुष्य को निर्धारित करती हैं। अत: परिस्थितियों को अनुकूल हुए बिना व्यक्ति स्वतंत्र नहीं होता, समन्वय वस्तुगत नियमों के कारण ही होता है, यह व्यक्ति की इच्छा अथवा अमूर्त नियमों का परिणाम नहीं है। मार्क्सवादी दर्शन जो कि विज्ञानवाद का विरोधी दर्शन है, में भी मनुष्य को अस्तित्व के वास्तविक अर्थ से वंचित रखा गया है। मार्क्सवादी व्यवस्था में मनुष्य उस व्यवस्था का एक अंग मात्र रह जाता है, मार्क्सवादी आर्थिक नियंत्रणवाद वस्तुत: व्यष्टिता के निषेध का सिद्धान्त है। प्रत्ययवादी कहता है कि निरपेक्ष सत् को जान लेने के बाद मनुष्य को जानने की कोई समस्या नहीं रह जाती है। मार्क्सवादी कहता है कि आर्थिक परिस्थितियों को नियंत्रित कर लिया जाय तो मानव जीवन की वास्तविकता को भी नियंत्रित किया जा सकता है। दार्शनिक फायरबाख की चर्चा करते हुए मार्क्स कहते है कि फायरबाख ने हेगल के दर्शन की नवीन व्याख्या प्रस्तुत करने का प्रयास जरूर किया लेकिन वे शिकायत भरे स्वर में कहते हैं कि फायरबाख • के दर्शन का क्षेत्र सीमित था, क्योंकि वे दर्शन को सामाजिक, राजनैतिक क्रिया या परिवर्तन का स्वर बनाने में असफल रहे। मार्क्स कहते हैं कि फायरबाख का यह मत कि धार्मिक जगत् का वास्तविक आधार धर्मनिरपेक्ष जगत् है, सही है। लेकिन भौतिक जगत् से स्वतंत्र धार्मिक जगत् के अस्तित्व की व्याख्या भौतिक जगत् में अन्तर्निहित विरोधाभासों एवं द्वन्द्वों के समझने की है और उसे व्यवहार में दूर करने की है। कार्ल मार्क्स कहते हैं कि फायरबाख इस बात को समझने में असफल रहे कि धार्मिक भावना स्वयं में एक सामाजिक उत्पाद है और जिस अमूर्त व्यक्ति का विश्लेषण वे करते हैं वह एक विशिष्ट प्रकार के समाज से सम्बन्धित है।
मार्क्स कहते हैं कि धार्मिक जगत् की भ्रान्ति के उद्घाटन के पश्चात् दर्शन का कार्य भौतिक जगत् से सम्बन्धित भ्रम का उद्घाटन करना है। मार्क्स के अनुसार वह जब भौतिक जगत् की वास्तविकता को अनावृत करने का प्रयास करता है तब उसकी स्वयं की प्रकृति भी अनावृत हो जाती है। हम मार्क्स के दर्शन में सिद्धान्त एवं व्यवहार की एकता पातें हैं जिसके मूल में अतिक्रमण की अवधारणा व्याप्त रहती है जो स्वयं में सिद्धान्त एवं व्यवहार, यथार्थ एवं आदर्श की एकता को समेटे हुए है और स्वयं में भूत एवं वर्तमान की मानवीय क्रियाशीलता में निर्धारित एवं नियंत्रित होती है, लेकिन इसकी दिशा भविष्य
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