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८६ : श्रमण, वर्ष ५७, अंक ३-४ / जुलाई - दिसम्बर २००६
दर्शनों में माना गया है कि कर्म स्वभावतः अचेतन है अतः उनका फल देने वाला कोई न कोई चेतन है जो जीवों को कर्मों की शुभता व अशुभता के आधार पर फल प्रदान करता है और जीव कर्मों के अच्छे और बुरे अनुभव के आधार पर उनका फल भोगता है।
जैन दर्शन में इस धारणा को लेकर तात्त्विक दृष्टि से मतभेद है। अर्थात् वह यह नहीं मानते कि शुभ अशुभ कर्मों का फलदाता ईश्वर है । ईश्वरवादियों (शैव) के यहां जिस कर्म के लिये ईश्वर की कल्पना की गई उस रूप में कर्म को ही जैन दर्शन में ईश्वर माना जा सकता है क्योंकि उसी के अनुसार जीव विभिन्न योनियों में भ्रमण करता है। दूसरी बात मुक्त जीव ही सुखवादी अनन्त चतुष्टयों से युक्त हो कृतकृत्य करता है और उसके द्वारा किये गये कर्म स्वयं ही फल देने में समर्थ होते हैं। उनके लिये किसी चेतन तत्त्व की कोई आवश्यकता जैन दर्शन को नहीं होती है। कर्म विपाक की प्रक्रिया के अनुसार जब कर्म पक जाते है अर्थात् उनका समय पूरा हो जाता है तो वे स्वयं ही अपना फल प्रदान करते हैं जबकि शैव सिद्धान्त में यह आवश्यक कृत्य शिव द्वारा किया जाता.
है।
शैव सिद्धान्त की इस व्याख्या में जहां जीव कर्म का आवरण हट जाने पर शिव के समान हो जाता है। वहां भक्ति की पराकाष्ठा और भी बढ़ जाती है जब जीव द्वारा किये गये समस्त कर्म शिव के कर्म हो जाते हैं अर्थात् जीव समस्त कर्मों को शिव को समर्पित कर देता है। इसके विपरीत जैन दर्शन मोक्षावस्था में आत्मा का किसी शक्ति में विलीन होना नहीं मानते हैं। उनके अनुसार समस्त आत्माओं की स्वतंत्र सत्ता रहती है। आत्मा किसी अन्य शक्ति में अन्तर्भूत न होकर लोकान्त में जाकर एक स्थान विशेष पर विराजमान हो जाते हैं जिन्हें आगमिक शब्दावली में सिद्धशिला कहते हैं और वहां से वापस नहीं आते हैं यदि मुक्त जीव का संसार में वापस आना माना जाय तो संसारी और : मुक्त 'जीव में कोई अन्तर ही नहीं रह जायेगा और मोक्ष की व्याख्या असंभव हो जायेगी।
जैन व शैव दर्शनों में मोक्ष हेतु प्रतिपादित मार्गों में विशेष समानता दिखाई देती है। प्रारम्भ से ही मोक्ष प्राप्ति के लिये अलग-अलग मार्गों का प्रतिपालन किया जा रहा है। वेद से कर्ममार्ग, उपनिषद से ज्ञानमार्ग, भागवत से भक्तिमार्ग, ध्यान आदि से योगमार्ग का विकास हुआ। जैन व शैव इन दोनों ही दर्शनों में न केवल ज्ञान, न कर्म और न केवल आचरण से मुक्ति प्राप्त हो सकती
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