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जैन 'हिन्दू' ही हैं, लेकिन किस अर्थ में? : ३३
आक्षेपों का निरसन- उनका यह आक्षेप वस्तुत: वैदिकधर्म पर है। उनका कहना है कि जैनधर्म वैदिकधर्म की शाखा न होकर वह एक स्वतंत्र धर्म है। उनका यह कहना ठीक है, तथा उससे केवल इतना ही निष्कर्ष निकलता है कि जैन वैदिक नहीं हैं। परन्तु इस कारण उनके 'हिन्दू' होने में कोई बाधा नहीं है, यह 'हिन्दू' शब्द के सत्यार्थ से स्पष्ट है। 'जिन' और 'वेद' इन शब्दों से बने 'जैन' और वैदिक'- ये दोनों शब्द जितने निर्विवाद रूप से धर्मनिष्ठ, एक पारलौकिक एवं आध्यात्मिक तत्त्व-पद्धति के या धर्मग्रन्थ के द्योतक हैं; उतनी ही निर्विवादता से 'हिन्दू' शब्द किसी धर्म-वाचक शब्द से नहीं बना है। अपितु वह मूलत: और मुख्यत: देशनिष्ठ और राष्ट्रनिष्ठ है। ‘जो वेद का अनुयायी है वह हिन्दू'-ऐसा 'हिन्दू' शब्द का पूरा अर्थ नहीं है। परन्तु 'हिन्दू' शब्द का 'वैदिक' शब्द के स्थान पर गलती से उपयोग होने के कारण ही हमारे कुछ जैन-बंधुओं को इस शब्द का त्याग करने की इच्छा होती है। परन्तु उपरोक्त 'हिन्दू' शब्द की व्याख्या पर जिसे हिन्दू महासभा ने भी स्वीकृत किया है, यह आक्षेप नहीं आ सकता है। अत: इस व्याख्या के अनुसार ये दूसरे पक्ष के लोग भी अपने को हिन्दू मानेंगे? क्योंकि व्याख्या के कारण वैदिकधर्म से जैनधर्म का स्वातन्त्र्य संरक्षित रखने में उनको किसी प्रकार की पाबन्दी नहीं है। कौनसा धर्म स्वतंत्र है, या शाखा है- यह उसका विषय है ही नहीं। यह व्याख्या इतना ही देखेगी कि 'धर्म स्वतंत्र हो या किसी धर्म की शाखा हो, हमारी इस भारतीय जाति में जन्म लेने के कारण उसकी 'पितृभूमि' एवं 'पुण्यभूमि' आसिंधुसिंधु भारतभूमि ही है, या नहीं?'
गलत व्याख्या के कारण नासमझी हो गई- जो वेद को प्रमाण मानता है, वही 'हिन्दू' है- ऐसा समझने की भूल हम सबसे हो गई। इसी भूल के कारण हिन्दू-राष्ट्र के अवैदिक-जैन बौद्ध, सिक्ख आदि के मन में जो कलुषता उत्पन्न हुई है; उसका दोष इनका अकेले का नहीं है। 'जो वैदिक, वही हिंदू' ऐसा हम जब तक भूल से कहते आये, तब तक जिनको वेदप्रामाण्य मान्य नहीं था, जिनकी निष्ठा 'जैन-बौद्धप्रभृति धर्म स्वतन्त्र धर्म हैं'- या थी, उनको वैदिक के अर्थ में ही उपयोग किए गये 'हिन्दू' शब्द के त्याग करने की स्वभावत: इच्छा हुई। हिन्दूराष्ट्र के बहुसंख्यक लोग आज भी 'श्रुति-स्मृति पुराणोक्त
सनातनधर्म के अनुयायी होने के कारण बहुसंख्यक के नाम पर उस समाज • को स्थूल लक्षण से सम्बोधित करते हैं, इसमें किसी ने भी किसी भी हेतु पुरस्कार
या दृष्टहेतु से 'वैदिक' अर्थ में 'हिन्दू' शब्द का उपयोग किया- ऐसी बात नहीं
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