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४० : श्रमण, वर्ष ५७, अंक ३-४ / जुलाई-दिसम्बर २००६
कि क्या आप समझते हैं कि पुत्र कहीं से ऐसे ही आ जाते हैं।
इसी प्रकार उत्तराध्ययन में वर्णन आया है कि शिष्य अपने गुरु का आदेश पाकर हाथापाई कर बैठते थे। हरिकेशी मुनि जब किसी ब्राह्मण के यज्ञवाटक में भिक्षा के लिए गये तो अपने अध्यापक का इशारा पाकर छात्रगण (खंडिय) मुनि को डंडों, बेतों और कोड़ों से मारने-पीटने लगे जिससे उनके मुँह से खून की उल्टी होने लगी। विद्यार्थी जीवन
प्राचीन युग में विद्यार्थियों के भोजन-वस्त्र और रहने-सहने का क्या प्रबन्ध था, इस विषय का ठीक-ठाक पता नहीं चलता। लेकिन जान पड़ता है कि विद्यार्थी सादा जीवन व्यतीत करते थे। कुछ विद्यार्थी अध्यापक के घर रहकर पढ़ते और कुछ नगर के धनवन्तों के घर अपने रहने, खाने-पीने का प्रबन्ध कर लेते थे। शंखपुर के अगडदत्त नाम के राजकुमार का उल्लेख मिलता है जिसने वाराणसी में कलाचार्य के घर रहते हुए विविध कलाओं की शिक्षा प्राप्त की थी।'
कभी विद्यार्थी का विवाह अपने ही उपाध्याय की कन्या से भी हो जाता था। मगध देश के अचल ग्राम में धरणिजत नाम का एक ब्राह्मण रहता था। उसके पुत्र का नाम कपिल था। वह रत्नपुर नगर में गया और वहाँ उपाध्याय के घर रहकर विद्याभ्यास करने लगा। कुछ समय पश्चात् उपाध्याय ने अपनी कन्या सत्यभामा का उससे विवाह कर दिया। अनध्याय ___अनध्याय के दिन पाठशालाएँ बन्द रहती थीं। कोई बाह्य कारण उपस्थित हो जाने पर भी पाठशालाओं में छुट्टी हो जाती थी। यदि कभी आकाश में असमय में मेघ दिखायी देते, मेघ गर्जना सुनायी पड़ती, बिजली चमकती, घनघोर वर्षा होने लगती, कुहरा गिरता, अंधड़ चलता. या चन्द्रग्रहण या सूर्यग्रहण लगता तो पाठशालाओं में अध्यापन का कार्य बन्द रहता। यदि कभी दो सेनाओं या दो ग्रामों में लड़ाई ठन जाती और आस-पास की शान्ति भंग हो जाती, स्त्रियाँ कलह करने लगती, मल्ल-युद्ध होता या ग्राम स्वामी या ग्रामप्रधान आदि की मृत्यु हो जाती तो भी स्वाध्याय करने का निषेध था। इसके अतिरिक्त छोटे-छोटे कारणों को लेकर भी पढ़ाई बन्द हो जाती। उदाहरण के लिए यदि बिल्ली चूहे को मार देती, मार्ग में अंडा दिखाई दे जाता, मोहल्ले में किसी बालक का जन्म होता तो भी अध्ययन बन्द कर दिया जाता था।
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