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३० : श्रमण, वर्ष ५७, अंक ३-४ / जुलाई-दिसम्बर २००६ अर्थ के एक बहुत पुराने प्रमाण के रूप में उसे यहाँ दे सकते हैं। शालिवाहन . नाम के राजा के समय के वर्णन के प्रसंग में इस पुराण में लिखा है
जित्वा शकान् दुराधर्षान्, चीनतैत्तिरिदेशजान् । वाल्हीकान् कामरुपांश्च रोमजान् खरजान् शठान् ।। तेषां कोशान् गृहीत्वा च दण्डयोग्यानकारयत् । स्थापिता तेन मर्यादा म्लेच्छार्याणां पृथक्-पृथक् ।। सिन्धुस्थानमिति प्राहुः राष्ट्रमार्यस्य चौत्तमस । म्लेच्छस्थानं परं सिन्धोः कृतं तेन महात्मना ।।"
-(भविष्यपुराण, प्रतिसर्ग पर्व, आ. २) अर्थ- इसका मतलब है कि शकादिकों को जीतनेवाले उस आर्यराजा ने अपने श्रेष्ठ आर्यराष्ट्र की 'सिन्धु' यही सीमा रखी। 'सिन्धु' के इस पार (पूर्व) के देश का 'सिन्धुप्रदेश' और उस पार (पश्चिम) के देश का ‘म्लेच्छ प्रदेश' नाम पड़ा। इन श्लोकों से यह स्पष्ट होता है कि प्राचीन काल में भी 'सिन्धु" (हिन्दू) शब्द किसी धर्मविशेष का वाचक नहीं था। ___ 'जैन' हिन्दू क्यों?- 'हिन्दू' शब्द का यही राष्ट्रनिष्ठ अर्थ जैनियों के प्राचीन साहित्य में नि:संदिग्धता से स्वीकार किया गया है। इस बात को जैन विद्वान् अवश्य जानते हैं। जैन साहित्य में 'हिन्दू' शब्द का गौरव से उल्लेख है और 'हिन्दू' का अर्थ है 'आर्य, जो हिंसा को या हीन कर्मों को बुरा मानता है, उसकी निन्दा करता है'- इस तरह उसका विश्लेषण किया है।
हिन्दू शब्द को जैन, वैदिक, शाक्य, शैव, सांख्य या वैष्णव- इस तरह किसी विशेष धर्मों से अथवा धर्ममतों से सम्बन्धित नहीं किया है। जिस आर्यपद्धति को जैन बड़े अभिमान से मानते आये हैं, उसी अर्थ से 'हिन्दू' शब्द का भी उनके साहित्य में गौरव से प्रयोग हुआ है।
इन सब कारणों से यह स्पष्ट है कि 'हिन्दू' शब्द की व्याख्या किसी भी धर्मनिष्ठ अर्थ पर ही उपस्थित करना बड़ी मोटी भूल है। 'हिन्दू' शब्द मूलतः देशवाचक-राष्ट्रवाचक (या प्रजावाचक) है। उसका मुख्य आधार 'आसिंधु-सिंधु' ही है। 'आसिंधु-सिंधु' भारतभूमि में अत्यन्त प्राचीनकाल से जिनके पूर्वज परम्परा . से निवास करते आये हैं, इसी राष्ट्र में प्रचलित संस्कृति, गढ़े गये इतिहास, बोली गयी भाषा, अनुसरण किये गये धर्म, जिनके संस्कृति, इतिहास, भाषा
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