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अतिरिक्त भी आपकी स्तवन एवं स्तुति संग्रह आदि पुष्कल रचनायें ग्रंथस्थ हो चुकी, हैं। इसके अतिरिक्त आपका 'पूजा संग्रह' भी प्रकाशित हो चुका है। जो तत्वज्ञानमूलक भक्ति की दिशा में भी काफी प्रकाश डालता है। आप केवल कवि नहीं किंतु आशुकवि एवं भक्त कवि भी थे। विद्वानों को यथायोग्य विश्लेषण से आपके काव्य साहित्य से बहुत कुछ प्राप्तव्य है। हिन्दी सहज गजल को भी आपने संस्कृत में प्रतिबिंबित करने का यथायोग्य प्रयास किया है। ग्रंथरचना : जैसे आप काव्य. में निपुण थे वैसे ही आप अच्छे लेखक भी थे। संयम जीवन के प्रारंभ से ही आपकी लेखनी वेगवंत हो चुकी थी। प्रारंभ में आपने दयानंदकुतर्कतिमिरतरणि नामक ग्रंथ बनाया था। आज भी यह हिन्दी भाषा का ग्रंथ विद्वानों को आनंद देता है। मूर्तिमंडन आदि कई ग्रंथ आपने हिन्दी भाषा में बनाये थे।
संस्कृत भाषा में आपने एक लघु शिष्य की विज्ञप्ति को मान्य करके तत्त्वन्यायविभाकर नामक महाग्रंथ निर्माण किया। जैन दर्शन के तत्त्वविषयक एवं न्यायविषयक अनुपम विचारों का इस ग्रंथ में संदोहन है। इस महाग्रंथ पर बड़ी स्वोपज्ञ वृत्ति का भी आपने निर्माण किया है। सम्मतितत्त्वसोपान एवं सूत्रार्थमुक्तावलि आदि आपके ग्रंथ प्राचीन ग्रंथों की कठिनता को सुगम बनाने में सफल रहे हैं।
___ आपको प्रतिदिन नूतन साहित्य निर्माण करने का अभ्यास था। फलत: एक विशाल साहित्य निर्माण हो चुका है, जो आज तक अप्रकाशित अवस्था में है। शीघ्रता से उसे प्रकाशित करने की आज आवश्कता है।
आप नव्य ग्रंथ निर्माण के साथ प्राचीन ग्रंथों के पुनरुद्धारक भी थे। नयचक्र ग्रंथ का संपादन करके आपने बहुमूल्य ग्रंथरत्न को पुनर्जीवन दिया। इस संपादन कार्य में आपने खुद के जीवन के बहुमूल्य १५ साल व्यतीत किये। इस ग्रंथ को भी आपने अपनी उम्दा टिप्पणी से अलंकृत किया है। इस ग्रंथ रत्न के चारों भाग आज प्रकाशित हो गये हैं।
सर्वसाधारण जनता की जिज्ञासा को तृप्त करने के लिये आप (कल्याणमासिक) के शंका समाधन विभाग में पाठकों की शंकाओं का निरसन करते थे। यह प्रश्नोत्तरराशि भी एकत्रित होकर प्रकाशित की जायेगी। मेरुत्रयोदशी आपकी पद्यबद्ध संस्कृत कथा है।
मूर्तिमंडन इस उर्दू भाषा में विरचित ग्रंथ के हिंदी भाषा में तीन संस्करण हो चुके हैं। यह ग्रंथ विश्वधर्मों में मूर्तिपूजा को अकाट्य युक्तियों से सिद्ध कर देता है। जैन-जैनेतर सबको यह पुस्तिका सत्य प्रकाशिका बन चुकी है। अविद्यांधकारमार्तंड सर्वदर्शनों के मुख्य विषयों की अल्प चर्चा करता हुआ जैनदर्शनविषयक समीक्षात्मक गहननिबंध है।
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