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१०९ तीसरी भिक्षा चारित्र लाना, चरण करण को कभी न भूलना,
घाती अघाती जला के आना, निर्दोष हो के खाना ..३ आत्म-कमल में पंचमी पाना, शिवरमणी में तूं लय लाना, लब्धिसूरि संजम फल पाना, निर्दोष हो के खाना ..४
(५७) तेरी भक्ति में चित्त बहे जिनेश्वर, मुक्ति के लिये, अति आनंद है जहां पर, नहि है क्लेश की होली, जन्म है नहि मरण है, ऐसी दो मुक्ति दिल खोली ..१
अनाचारी हूँ लाचारी, विचारी दोष देर कीजे, प्रचारी ज्ञान ज्योति को, सदानन्द सुख को दीजे ..२
प्रभु सिरताज हो मेरे, उड़ा दो मोह का घेरा, निजातम लब्धि लक्ष्मी का, बता दो जिनजी डेरा ..३
. (५८) जंजाली तूं क्यों बने मनवा, मुक्ति का पंथ मिलाले ..
तन धन जोबन में मस्ताना, बन पीछे पस्ताना, रगझग रगझग जुही है जगकी, नाहक नाव डुबाना, नैया तिराकर तट पर जाकर, क्यों नहीं मुक्ति मिलावे ..१
भूल-भूलैया मग तज चेतन, सरल पंथ में आना, झगमग-झगमग ज्योति जगा के , केवल ज्ञान सुहाना, आत्म खजाना खूब मझान, क्यों नहीं सिद्धि मिलावे ..२ जिन गुण गाना, दिल बहलाना, दुःख में नहीं मुरझाना, लटपट, खटपट, झट तज चेतन, जन्म सफल कर जाना, आत्म-कमल में लब्धि बसाकर, ज्योति से ज्योति मिलाना ..३
(५९) ऐ-कर्म बता हमने बिगाड़ा है क्या तेरा,
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