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(५४) लगी है चाह दर्शन की, मिटा दोगे तो क्या होगा, ___ अनंते ज्ञानदर्शन की, जहाँ हस्ती कही जाती ऐसे गर मुक्ति के सुख को, दिखादोगे तो क्या होगा.१
अनंते जन्म मरणों से, सदा रुलती फिरती, अनंते पराक्रमकी भगवान, निकासोगे तो क्या होगा..२
इसी संसार सागर में, मेरी नैया डुबी जाती, मल्लाह बनकर मुझे स्वामिन्, उबारोगे तो क्या होगा..३
इसी संसार महावन में, मुझे महासिंह सताते हैं, राग और देष प्रभु इनको, उड़ा दोगे तो क्या होगा..४ __ मेरे में ज्ञान दर्शन की, महा लब्धि कही जाती, पड़ा है कर्म का पड़दा, उड़ा दोगे तो क्या होगा..५
श्रीजिन याद करो, प्रभु की मूरति दिल में आइ, सुर नरेशों ने खुब गाई,
नयनों से नयन मिलाइ..श्री जिन ..१ याद करो तुम जिनको प्यारा, दु:खों हटेगा तुमारा,
अब मेरा प्रभु सहारा-सहारा पल पल जिन ध्यावो बालमा, आत्म कमल खिलावो हम
लब्धि जीवन का है खसम..३
(५६) प्रभु ने सिखाइ भिक्षा, निर्दोष हो के खाना, पहेली भिक्षा जिन दिन लानी, काम मस्ती में कभी मत जाना, नानी मोटी मां बहेन ज्युं गाना, निर्दोष हो के खाना ..१
दूसरी भिक्षा ज्ञान को ध्याना, अज्ञानी के पास न जाना, विषय विकार को छोड़ के आना, निर्दोष हो के खाना ..२ .
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