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(५१) चौदह स्वप्न स्तवन सुपन देखत राणी त्रिशला मैया, स्वर्ग से आ के प्रभु गर्भ वसैयां..१
प्रथम श्वेततर गजवर सोहे, दूजे वृषभ है मन को हरैया..२ वीजे केसरी सिंह अति सोहे,
चौथे सुपने लक्ष्मी मैयां..३ पांचमे पुष्प की माल युगल है, छठे चन्द्र है ज्योति धरैयां..४
सातमें सुरज झलहल दीपे, - आठमें ध्वजदंड गगन उडैया..५
नवमें मंगलकारी कलश है, दशमे सरोवर वीचि नचैयां..६
एकादश क्षीरसागर सोहे, बारमें गगन विमान घुमैयां..७
तेरमें सुपने रत्नकी राशी, चौदमे अग्नि गगन पचैयां..८ आत्म कमल में लब्धि पावे, चौद सुपन का दर्श करैयां..९
(५२) श्री महावीर स्वामी पालणां नुं स्तवन
पालणे झुलत प्रभु वीर जिणंदा, झुलणा झुलावे श्री त्रिशला मैयां..१
रत्न कनकमय पारणुं सोहे,
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