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अंतरा हां हां तोरी वारी जाऊं, गुणदाम दीले डाऊं, भवजल तार नौका, पार कीजे पार कीजे, दिल के दिलारी, काम दाह को निवारी..२ आत्म-कमल प्यारी, लब्धि शोभे मनोहारी, तरण तारण तुं ही, सुख दीजे सुख दीजे सुगुण हारी, मुझे दिखा दो शिवनारी..३
(६९) मति उलटी सुलटा दो बालम, मोरे दिल में काती लगी है..१
अंतरा तेरे गुण गण बीसर गये है, अपना भाव बतादो बालम..२
मेरे दिल में साच बसा दो, जुड़ की जड़ को जला दो बालम..३
अंतरा आत्म-कमल में ध्यान की माला, लब्धि सूरि को दिला दो वालम..४
(७०) सखीरी आज प्रभुजी का ज्ञान सुणी, सखीरी आज सुझत नहि कछु राग रंग..१ ।
अंतरा जात रही दुविधा तनमन की भरण लगे शुभ भाव गगर भोरी, ... ऐसे तरुं शुध्ध हो गइ मनकी,
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