________________
११३
(६५) ... श्री महावीर जिन स्तवन प्रभु दे दो दर्शन प्यारे, सुंदर सुरत तोरी मन लागे ..
सुंदर गुण तुम्हारे ..१
अंतरा आज मुज घट ज्ञान उदय भयो, दर्शन करके बीरजी तारे, आत्म-कमल सूरि लब्धि जागो, जप जप ज्ञान किशोर ..२
___ (६६)
सामान्य जिन स्तवन तूं ही आधार सकल भविजन को, पालक सचराचर जीवन को..१
अंतरा तूं ब्रह्मा तूं ही विष्णु, जिननी तूं तारे सब ही जगत को..२
तूं ही त्राता तूं ही भ्राता, कारण तूं प्रभु मुक्तिगमन को..३ आतम कमल में लब्धिदाता, वारण तूं प्रभु भववन दव को..४
सामला पार्श्व जिन स्तवन सांवरियाजी को मेरा वंदन, मोरे विषयो भग जावे..सांवरिया..१
अंतरा पार्श्व प्रभु तोरी शासन मतियां, जोर शोर शुद्ध करती मनवा..२ आत्म-कमल शुभ लब्धि भरवा, भोर भोर नित्य गावे भवियां..३
(६८) ले लो ले लो प्रभुजी का नाम, हां ले लो ले लो प्रभुजी का नाम
बिसर गई मतियां हमारी, जीया नाहि माने नाहि माने अधम विकारी,
कामे बना मैं लाचारी..१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org