Book Title: Sramana 2000 07
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 123
________________ मोहमयी यह भूमिका, लग रहे दु:ख के झाड़ .. काल शिकारी का पड़ा, देख तुं आंखे फाड़ नाग ज्यूं उपर लटकता है, विषय चेतन..१ मोह लूटेरा लूंटता, कर रहा जहां निवास अवसर पर सभी जीव के, डाल गले में पास आत्मधन लूंट अटकता है..२ भव भीतर रहता सदा, राग सिंह बलवान, द्वेष केसरी भी जहां, करत जीवों की हान, प्राण ले नीचे पटकता है..३ -- लाख चौरासी रुलता, होता नहीं होशियार __ बार बार इस स्थान में, खाता है खूब मार समझकर क्यों न छटकता है..४ आत्म कमल में जप लियो श्री जिनवर का नाम ___ लब्धि सूरि संजम मिले, जावेगा शिवधाम ... "फिर नहीं भव में भटकता है विषय धर्म श्री जैन की श्रध्धा, नसीबां वर भवी पावे नसीबां वर भवी पावे, नसीबां वर भवी पावे..१ राग और द्वेष से खाली, जहां श्री देव जिनवर है सकल मिथ्यात्व मिट जावे, नसीबां वर भवी पावे ..२ गुरुकुल तार दुनिया के, न कंचन कामिनी राखे सफर पैदल करे भावे, नसीबां वर भवी पावे ..३ दया है जैसी इस मत में, नहीं ऐसी किसी मत में पूरण जीव रूप फरमावे, नसीबां वर भवी पावे रखे निशदिन जो श्रध्धा, गति नर देव की पावे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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