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खींच लीनो मन युं ही जिणंद..२ आत्म-कमल में लब्धि सूरि को, तार दीयो शुभ ज्ञान भरी-मोरी। पार करो नैया हम जन की खींच लीयो शिवपुरी जिणंद..३
(७१)
सज्झाय दुनिया दोरंगी देखी, वैराग्य दिल जागे, जन्म-मरण के जारी, दुःख दो लगे है भारी, 'भविजन अति मुंझाते, बुरा जगत् ए लागे..१
विषय बुरा हे भाई, करते तेरी तवाइ, चेतन ले चित्त विचारी, दिल क्यों लगाता रागे-..२ गुण ग्राही बन सदा तूं, दोषो पराये त्यज तूं सब गुण नहीं कहीं है, सब गुण वीतरागे..३ हर मान माया बुरी, अवगुण को दे तूं चूरी, कोह लोह को हटा दो, दिल दो कषाय त्यागे..४
इंद्रियां कर ले काबू, भल कर्म को ए साबू कर त्याग की तियारी, शिवसुख बड़ा है आगे..५
आत्म कमल में तेरा, वैराग्य का हो डेरा, लब्धिसूरि इसीसे, कर्मों का केर भागे..६
(७२) तूं चेत मुसाफिर चेत जरा, क्यों मानत मेरा मेरा है, इस जग में नहीं कोइ तेरा है, जो है सो सभी अनेरा है स्वारथ की दुनिया भूल गया, क्यों मानत मेरा मेरा है तूं..१ कुछ दिन का जहां बसेरा है, नहीं शाश्वत तेरा डेरा है
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