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वर्धमान जिनेश्वर नाम बड़ा, लेने मुक्ति को मैं तेरे चरणों पड़ा, गुल को बुलबुल ज्युं गुण ग्रहुं, मुबारक मुबारक मुंह से कहुं..१ तेरा जौहर गुणों का है चमक रहा, तेरे दर्श को तरस रही है जहां,
आफताब ओ अन्धेरा मेरा हरो, मेरा जल्दी ही भव से किनारा करो..२ तेरी वाणी सुणी मेरा काम हुआ,
अब दुष्ट करम बदनाम हुआ, तेरे ध्यान से मेरी बदल गई दशा, प्रभु तूं ही तूं ही है नयन में बसा..३ ___गुण तेरे हमेरे दीलो में रहे, तेरे हुकम का झंडा सदा सिर बहे,
तेरा शासन चांद चकोर मना, इससे आनंद आनंद खूब बना..४ गुण गान करी सुधा पान किया, मानुं अजरामर पद अब ही लिया,
मेरे आत्म-कमल में विराजे रहो, सूरि लब्धि के चित्त में भक्ति बहो..५
(४९) मेरे दिल में श्री वीर विराज रहो,
ए सिर को सदा सिरताज रहो.. शुद्ध देव गुरु की टेक रहो, (अंचली) जिन धर्म का रीति रीवाज रहो, मुख से जिन ए उच्चार रहो,
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