Book Title: Sramana 2000 07
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 113
________________ १०७. मंगल गावे सब देव देवैयां..२ मोर मेना और पुतली जडिंदा, गीत गावत तिहां किन्नर गवैयां..३ त्रण ज्ञान के धारी निजवर, जग माया में नाहि नचैयां..४ भर यौवन में संजम पाये, रमा रमणी का स्नेह हरैयां..५ आत्म-कमल में लब्धि ध्यावे, धन्य हो जिनवर शिव वसैयां..६ (५३) श्री सिष्पचक्र स्तवन सिध्धचक्र मुज दिल में भाया, कल्पतरु सुखकार सोहाया, नवपद शाखा जिसकी सवाया, सुर नरवर किनर गुण गाया, तुमही जग विख्यात तारक, तुम ही जग विख्यात..१ बारह अंग में तुमरी छाया, माया नसाया शिव वसाया, तेरा ही ध्यान प्रधान नवपद, तेरा ही ध्यान प्रधान ..२ सार सार सब तत्त्व मीलाया, श्री सिध्यचक्र के स्थान ठराया, अव्वल है जग सार नवपद, अव्वल है जग सार..३ अरिहंत सिध्ध आचारज सोहे, वाचक मुनिपद मन को मोहे, दर्शन ज्ञान निधान नवपद, दर्शन ज्ञान निधान..४ आतम मन में कमल बनाकर, अष्ट पांखडीओ नवपद ध्याकर तप चरण अवदात जग में, तप चरण अवदात..५ आत्म कमल में तत्त्व बसाना, लब्धि मिलाना, गुण को खिलाना, जपी सोहं पद जाप भवियां, जपी सोहं पद जाप..६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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