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और घट में दया का प्रचार रहो.. मेरे.. १ जिनराज मेरे रहीमगार रहो,
भाई भाई का दिल से मिलान रहो, नहीं कोई किसी से विरोध रहो प्रभु नाम हाजर हजूर रहो .. २ तूं ब्रह्मा, विष्णु, महेश रहो, और दुनिया भेद का छेद लहो, नहिं जग में कुछ ही क्लेश रहो, सब लोक में संप सरिता बहो.. ३ प्रभु गुण में दिल मुस्ताक रहो, ए सबका भला कर पाक रहो,
मेरे आत्म-कमल में नाथ रहो,
सूरि लब्धि सदा जयकार रहो .. मेरे .. ४
(५०) नांदिया (मारवाड़) मंडन श्री महावीर जिन स्तवन बलिहारी महावीर गुण भावना रे,
गावना गावना गावना रे, बलिहारी (अंचली) सिद्धारथ को नंदन सोहे, त्रिशलादेवी झुलावना रे.. १ साथ यशोदा लग्न बना के, भोगावली को खपावना रे.. २ यौवन वय में महावृत्त लीनो, उपसर्गे स्थिर छावना रे.. ३
साडाबार बरस तक सह के, केवलज्ञान उपावना रे..४ समोवसरण में देशना दे के, लाखो जनों को उध्धरना रे.. ५ नांदीया मंडन ! वीर जिनेश्वर । भविक दिल से ध्यावना रे ..६ आत्म कमल में बन के अयोगी, लब्धि सूरि शिव पावना रे..७
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