Book Title: Sramana 2000 07
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 108
________________ १०२ (४५) मंदिर में आ के सिरन को झुकाय देना है, मेरे बढ़े हुए, करम को छीन लेना है, __ जिनने जगत में, बीज बोया है, धर्म रूपी अरु पाप जलाया सही..१ प्रभु ने प्रेम की बंसी, बजा के लुभा लिया, प्रभु महावीर दिले लगा के शुभा लिया, वीर बिना इस भव में साधन, कोइ भवियों ने भव में सहारा नहीं, प्रभु के धून की वाणी ने विषय छुड़ा दिया, ___ आत्म-कमल में लब्धि मिला दो, .... बिन मुक्ति सुखों का उजाला नहीं..२ (४६) वीर जिणंद भुज दिल में भाया, काल अनादि का मोह भगाया, समकित मेरे दिल में बसाया, आतम ध्याया ज्योति जगाया, तुम ही हो वीतराग बालम, तुम ही हो वीतराग..१ काल अनादि से भव में फंसाया, सुख नहीं पाया, दुःख में दराया, तुम ही हो वीतराग बालम, तुम ही हो वीतराग ..२ प्रभु चरणों में सिर को झुकाया, दु:ख हटाया, मोह मिटाया, तुम ही हो वीतराग बालम, तुम ही हो वीतराग..३ अब निजवर मेरे दिल में छाया, गुण गण गाया, भव से तराया, तुम ही हो वीतराग बालम, तुम ही हो वीतराग..४ भुला न जाये गुण को भुलाया, ज्ञान जगाया आनंद पाया, लब्धि सूरि सुखकार बालम, लब्धि सूरि सुखकार बालम..५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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