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अब ज्ञान और चरण की, खूब म्हेर भुज पे कीजे, आत्म-कमल में लब्धि, लहरों को बहा देना ॥८॥
(४३) भज महावीर मोरे भैया, वो क्रोड मंगल है सया, जो वीर को निशदिन ध्यावे, पावत गति शिवरी.. हार गति ही लाख चोराशी, दुःख गयो भव को.. पामे दो केवल नयना, न होय कदी फीको ..१
चांद सूरज सम शोभित, अनुपम है मोती, लक्ष कोटि दिवाकर हारे, देख प्रभु ज्योति ..२ " लगनी है थारी, सूरत है प्यारी, आत्म-कमल में तुमको ध्या, सुमतियां पाइ.. लब्धि सूरि गुण गावत, भारी पावत शिवनारी,
गावत भविजन भावथी, श्रीमहावीर के पास, सेवा करते भाव धरी जो, मुक्ति जावन को ..३ ...
(४४) दुनिया में प्रभु वीर ने, सबको जगा दिया, जिसने सदा यह मोह को, जड़ से भगा दिया, सिखलाया मंत्र अहिंसा का, वचनों सुना सुना, जिसने पिया अमृत यह, वो अमर बन गया..१
कहते थे पाखंडिया, श्री वीरने क्या किया, तारे अनंत जीव को, जलवा दिखा दिया..२ महावीर तोरी ज्योतिए, दुनिया में छा रही,
अजब तेरे झोहर के, आगे कोई नहीं..३ आत्म-कमल में ध्यान जो, श्री वीर का रहे, लब्धिसूरि सब संपदा, जीवन में लहे..४
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