Book Title: Sramana 2000 07
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 39
________________ लब्धिसूरि की रचना में भक्ति सौरभ - रावलमल जैन "मणि' भारतीय संस्कृति का रेखांकन करते हुए राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' संस्कृत के चार अध्याय में उल्लेख करते हैं कि - भारतीय संस्कृति विश्व की एक महान् संस्कृति है। संस्कृति के इन्हीं चन्दन कछासे में कभी सम्यक ज्ञान, सम्यक दृष्टि एवं सम्यक चारित्र का जयघोष सुना, तो कभी वैदिक सभ्यता के पूर्व की एक अरुणीय रक्तिम कुंकुमी में सूर्योपासना के वैदिक मंत्र सुने, तो कभी संस्कृति के इन्हीं क्षितिज द्वारों पर ऊँ ह्री अहम् नमः का भक्ति-नाद सुना, तो कभी वीतराग वाणी में आत्मा का आलोकमय उज्ज्वल रूप देखा। कभी अरण्य संस्कृति के अध्येताओं ने उपनिषद की नवल उषा की उपासना की, तो कभी श्रमणों ने जीवन के अध्यात्म तत्वों की गवेषणा की तो कभी जन्म, जरा और मृत्यु से मोक्ष प्राप्त करने के लिए निर्वाण का सोपान रचा। कभी वैदिक साहित्य का उत्स “तमसो मां ज्योर्तिगमय, असतो मां सद्गमय, मृत्योमां अमृत गमय'' की व्याख्या करता हुआ अरण्य का मनीषी भारत की संस्कृति को नवल परिवेश दे रहा था। तो कभी श्रमण यात्रियों ने वीतरागत्व का अनुसरण करते हुए जन-जीवन, आत्मा, शरीर और पुद्गल की सूक्ष्म चिन्तना में लगा हआ था। संस्कृति की इसी पुण्य त्रिपथगा में भारत का अध्यात्म चिन्तन अपना अर्ध्य चढ़ा रहा था, तो कभी सम्यक् दर्शन, ज्ञान, चारित्र का विमल रूप पूरी आभा और विभा के साथ सभ्यता का मलयजी गंध प्रसारित करता हुआ अबाध गति से उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम की ओर बह रहा था। . भारतीय संस्कृति की यह सनातनी सलिला सरस धारा की तरह विंध्य को गुदगुदाती हुई, सतपुड़ा को जगाती हुई नदी-नद-नालों के कछारों में अबाध गति से प्रवाहमान होती रही है। जन-जीवन में साधारण जन उपदेशों, प्रवचनों, स्तवनों एवं भक्ति-भाव और भजन के माध्यम से इस संस्कृति से स्नान कर नए-नए स्नातक बन रहे थे। भारतीय संस्कृति का चिन्तन तीन सोपानों की सम्यकता का एक अपूर्व मिश्रण है और वे हैं - १. जैन संस्कृति २. बौद्ध संस्कृति ३. वैदिक संस्कृति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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