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गावे ||२||
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मेरा लगा रहा है दील, तेरा तीराना हो गया ... माया का खेल खेल के आंसु बहा के चल दिये, लब्धि की लय लगी रही, मुक्ति मिलाना हो गया गावे ||३|| (२७)
श्री पार्श्वनाथ जिन स्तवन
शरण ले पार्श्व चरणों का, फिर फिर नहिं मिले मौका (अंचली) देवन के देव अ सोहे, इन्हों को देख जो मोहे,
हटे तस दुःख दुनिया का, फिर फिर नहिं मिले मौका, शरण ॥१॥ इन्होंका नाम जो लेते, उन्होंको शिवसुख देते;
मारग यह मोक्ष जाने का, फिर फिर नहिं मिले मौका, शरण || २ || अनादि काल भव भटका, जभी तूं पार्श्व से छटका;
मिला अब वख्त ध्याने का, फिर फिर नहिं मिले मौका, शरण ॥३॥ जिन्होंने सर्प को तारा, नमस्कार मंत्र के द्वारा,
वो ही तुम तार लेने का, फिर फिर नहिं मिले मौका, शरण ॥४॥ गुण है पार्श्व में जैसे, नहिं और देव में ऐसे,
यही व्यापार लगाने का, फिर फिर नहिं मिले मौका, शरण ॥५॥ कहे लब्धि जिणंद सेवा, ऐसा है अन्य नहिं देवो; भवाब्धि पार कर नौका, फिर फिर नहिं मिले मौका, शरण || ६ || (२८)
श्री पार्श्वजिन स्तवन
शुद्ध दर्शन देकर शिवपुर का, दिखलाया द्वार जिनेश्वर ने,
एक पल में पाप विनाश किया, भविजन का पार्श्व जिनेश्वर ने (अंचली) जब काष्ठ में जलता नाग दिखा, समझाया कमठ योगीश्वर ने, जलते को काष्ठ से बहार किया,
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