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मारग दुःख उवेरवी आयो, दुःख तिमिरहर भाण रे नेमि ||१|| ...नेह नजर से निहाली दादा, दीजिए केवलदान ; अनादि के आवरणो टाली, कीजिए निज समान रे नेमि ॥२॥ पशुओं का प्रभु सुणी पोकारा, छुड़ा अ बंधन तास :
नेमि ॥३॥
मैं प्राय: पशु सरीखा स्वामी, कर्म तोड़ी पूरो आश रे इस गिरनार उपर प्रभु पाये, दीक्षा नाण निर्वाण : दास तमारो ते भूस्पर्शी, खाली रहे न सुजाण रे, नेमि ||४|| राजीमति रंभासी नारी, त्यागी तुझे जिस दिल,
वो दिल प्रभु जो मुझ को दीयो, तो मानुं मिला अखिल रे नेमि
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॥५॥
संवत निधि मुनि निधीन्दु काले, चैत्री पुनम के दिन, आतम राज लेने को लब्धि श्री नेमि चरणे लीन रे नेमि ॥ ६ ॥
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(२५)
श्री पार्श्वजिन स्तवन
अर्हन की भक्ति ना भुलुं, हां वह स्वामि निराले, 'प्रभु मेरे पार्श्व बचाले, हां तुं ही पार लगा दे, अर्हन ॥१॥ दुनिया में कलबल, हैया मां हलचल,
तेरे बीन कोन समाले, हां वह स्वामि निराले, अर्हन ॥२॥ ज्ञान हीन दुनिया में ज्ञान ही चमके,
चित्त में हो मेरे जीया ले, हां वह स्वामि निराले अर्हन ॥३॥ आत्म कमल में प्रगटी है ज्योति ;
लब्धि में कर दे उजाले, हां वह स्वामि निराले अर्हन ॥४॥ (२६)
श्री पार्श्वजिन स्तवन
गावे भी वो, ध्याये भी वो, आत्म खजाना हो गया, मेरे लीये तो नाथ का, ये ही सहारा हो गया
गावे ॥१॥
पार्श्व जिया मीलन तो दे, सहेजे मुझे हीलन तो दे,
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