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श्री महावीर जिन स्तवन मुज मनमें तुं ही, भुज तन में तूं ही,
मैं सदा रहुं जिन तुं ही ने तूं ही, ___ अब ही नहि तो कब ही सही, प्रभु दर्श दिखावो कहीं ने कहीं ॥१॥
लाखों को तारे थे जिनवर, अब हमको भी तारो दिलवर, हम प्यासे हैं प्रभु शिवसुख के, हमें चरण दिखादो, कहीं ने कहीं ।।२।।
तुम नाम रटन दिन रात करूं, तुम ध्यानमें मस्त सदा ही फिरूं,
उम्मेद है हमको तारोगे, प्रभु कर्म हरोगे कहीं ने कहीं ॥३॥
आत्म-कमल प्रभु सीमरण से, सूरि लब्धिका होय विकास सदा, ___ हम कर्मों को अब चूर करो, प्रभु दर्श दिखावो कहीं ने कहीं ॥४॥
(३८) श्री वीर जिन स्तवन
भक्ति निराली, भक्ति निराली ___ कोइ मांगे रमा रामा, कोइ मांगे सुत, भक्ति सुधा प्याला मांगु, जो है मुक्ति दूत.. भक्ति ॥१॥
___ कोइ कहे कृष्ण प्यारा, कोई कहे राम, रहीम रहीम रटे कोइ, मुझे वीर नाम ॥२॥
कोई चाहे हाथी घोड़ा कोइ चाहे दाम , मैं तेरे से कुछ न मांगु, भक्ति में आराम ॥३॥ .
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