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वाणी प्रभावे प्राणी को तारी, वरे मुक्ति वर नारी ॥४॥
बीजोवामंडन दर्शन पाकर, जीव बना जयकारी ॥५॥ आत्म-कमल में शैलेशी लब्धि, पा के करम दिये छारी ॥६॥
(३२) चाणस्मा मंडन श्री भटेवा पार्श्वनाथ जिन स्तवन ओ पार्श्व भटेवा रे, कर्मों को जरी रोकना, (अंचली) काम न बस में, क्रोध न बस में, ए तूं सब जान रे,
अहो मेरो आतम जाने रे, कर्मों को जरी रोकना ....१ नब्ज न बस में, दिल नहीं बस में, ए तूं सब जाने रे, अहो मेरो आतम जाने रे, कर्मों को जरी रोकना ....२ नरके रखडतां निगोद में पडतां, प्रभुजी बचावो रे,
सुख संपद लावो रे, कर्मों को जरी रोकना ....३ तिर्यंच दुःखी या, देव भी दुःखी या, मानव दुःख दावो रे,
न होय धर्म सहावो रे, कर्मों को जरी रोकना ....४ आत्म-कमल में, धर्म अमल में, शुभ लब्धि जगावो रे, मुझे अभु शिवपुर द्वावो रे, कर्मों को जरी रोकना ....५
(३३) श्री गौड़ीपार्थ जिन स्तवन गौड़ी श्री पार्श्वजिन सेवो श्रीकार, आनंदकारी,
नगरी बनारसी जनन्या जिणंदजी; मेरुशिखर नवराया हो स्वाम, भव दुःखहारी ॥१॥
___ तात आश्वसेन, वामा माता, प्रभावती जस प्यारी हो स्वाम, शिव सुखकारी ॥२॥
संजम लई प्रभु केवल पाम्या, भव्य जीवन हितकारी हो स्वाम, भाव दुःखहारी ॥३॥
आत्म-कमल करो, कर्मों थी न्यारा, लब्धिसूरि शिवधारी हो स्वाम, भवि हितकारी ....४ ।
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