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सुनवाया मंत्र जिनेश्वर ने ..शुद्ध ।।१।।
सुन मंत्र को वो धरणेन्द्र हुआ, नवकार का महिमा खूब किया,
दे दर्शन भव से पार किया, भविजन को पार्श्व जिनेश्वर ने ..शुद्ध ॥२।।
दुनिया दोरंगी छोड़ दीनी, प्रभु पाये शुभ संजम धन को,
तप करके घाती जलाय दिया, लिया केवनज्ञान जिनेश्वर ने ..शुद्ध ।।३।।
प्रभु केवल पा उद्योत किया,
जग जीवों का उद्धार किया, __ अंधेर हरा तिरि सुरनर का, उपकारी पार्श्व जिनेश्वर ने ..शुद्ध ॥४॥ शुभ आत्म-कमल में ध्यान धरी,
शैलेशीकरण विषे विचरी; ... ले मुक्ति शिव संपद को लिया, सूरि लब्धि पार्श्व जिनेश्वर ने ..शुद्ध ॥५॥
(२९) प्रभु याद करी तूं भज कर जा; तूं भज कर जा तूं भव तर जा,
भज सके तो भज ही जाना, नाहक भव में क्यों हि रुलाना,
जो धर्म किया है लेकर जा, तूं भजकर जा तूं भवतर जा, प्रभु ।।१।।
लाभ नहीं और जग में देखा,
कैसे बतायूँ इसका लेखा, __ (तूं) फिर फिर चेतन भज, कर जा,
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