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६६ युग के ऐसे ही एक विशिष्ट आचार्य थे। आचार्यश्री से मेरा कई बार मिलना हुआ है और मैं उनके व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हुआ हूँ। बीकानेर में जब आपका चातुर्मास हुआ तो व्याख्यान आदि में बराबर मेरा जाना हुआ करता था। फिर पूना, मुम्बई में भी उनके दर्शन का सुअवसर मिला। वे बड़े सरल प्रकृति के
और गुणानुरागी विद्वान् थे। उनके अनेक ग्रन्थ उनके विशिष्ट पांडित्य के परिचायक हैं। जैन दर्शन के साथ-साथ न्याय आदि अनेक विषयों के आप प्रखर विद्वान् थे। आपकी व्याख्यान शैली भी बड़ी आकर्षक थी। मेरे पर आपकी विशेष कृपा दृष्टि थी, परन्तु पूना और मुम्बई में मिलने पर आपने बहुत ही हर्षानुभव किया। इतने बड़े आचार्य का ऐसा धर्म स्नेह देखकर मेरा हृदय गद्गद् हो गया। वास्तव में वे एक विरल-विभूति थे।
आपका शिष्य समुदाय भी विशाल है और उनमें कई योग्य विद्वान् और सच्चरित्र पात्र आचार्य एवं मुनिगण हैं। उनके द्वारा भी यथेष्ट धर्म प्रचार और शासन प्रभावना हुई है और हो रही है इस दृष्टि से आचार्यश्री बड़े पुण्यवान थे कि जिन्हें इतने शिष्य-प्रशिष्यों का समुदाय मिला और उनकी सद्प्रवृत्तियों को चालू रखने और आगे बढ़ाने का सुयोग प्राप्त हो रहा है। आपके रचित ग्रन्थ कई भाषाओं और विषयों के हैं उसमें कई विद्वदभोग्य हैं तो कई जनसाधारण के लिये उपयोगी। आपकी काव्य प्रतिभा विशेष रूप से उल्लेखनीय है। नई राग-रागिनियों में आपने बहुत से स्तवन-भजन बनाये हैं और वे इतने लोकप्रिय हुए हैं कि हजारों स्त्रियाँ व बच्चे तक उन्हें मन्दिरों में गा कर आनंद विभोर होते हैं। वास्तव में उनकी कविता ने बहुत लोकप्रियता प्राप्त की। इस तरह हम देखते हैं कि उनकी प्रतिभा अनेक क्षेत्रों में असाधारण थी और उनकी शासन सेवाएँ भी अनेकविध हैं। ऐसे महान् आचार्य की पवित्र स्मृति में अपनी श्रद्धांजलि व्यक्त करते हुए लेखनी को विराम देता हूँ।
-अगरचंद नाहटा ज्ञान व दया के धनी पूज्य लब्धिसरि जी ने अपनी किशोर अवस्था में पंजाब को आनन्दित किया। उनकी विद्वत्ता व गजब की वक्तृत्व कला से वे यहाँ छोटे आत्माराम जी कहलाते थे। आपश्री ज्ञान व दया के धनी थे। आपके पास नित्य नये ज्ञान पिपासु
और अर्थ पिपासु आते, लाभान्वित होते और विचार चिन्तन का लाभ पाते। मैं उन दिनों स्नातकीय शिक्षण का छात्र था, प्राचीन भारत के इतिहास पर जो कुछ उनसे सीखा-समझा वह अमूल्य थाती है।
डॉ. मुख्तयार सिंह, लुधियाना
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