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पूजन से लहेराय, तोरी सेवा में लागुं ..५
(१४)
श्री आदि जिन स्तवन ओक भक्ति बसाले मेरे मन भक्ति बसा ले,
चूर करी कर्म सारे जा न सके हां ;
चार बड़े सुख कोइ ना न सके हां, मुक्ति को आंगण में तूं ही बुला ले ... मेरे मन ॥१॥
आदि प्रभु गुण तेरे दिल में बसा हां,
तीर्थपति प्यार तेरे दिल में हसा हां ; कर्मो को भक्ति से तूं ही भगा ले ... मेरे मन ॥२॥ __ज्ञान बिना कोई इसे ध्यान शके हां,
ध्यान बिना आत्मज्योति ना न शके हां ; आत्माकी ज्योति को तुं ही बसा ले ... मेरे मन ॥३॥
दुःखी है दुनिया की दर्द भरी बातें,
बड़े-बड़े धाती करे आतम की धातें ; ध्यान धरी जिनवरका दूर हटा ले ... मेरे मन ॥४॥
___ माया के मीठे-मीठे खेल निराले,
चेतन की माया से उनको उड़ा ले ; आत्म कमल लब्धि तुं दिलमें मिला ले ... मेरे मन ।।५।।
(१५) पोकरण फलोधी मंडन शीतलनाथ जिन स्तवन
शीतलप्रभु की मूर्ति, दिलको लुभा रही है, घट में सदा ही मेरे, ज्योति जगा रही है ॥१॥
नहीं कोई दिल सुहावे, जिनराज याद आवे, पलपल धड़ी-धड़ी में, उनका ही जाप भावे ॥२॥
तूं राज सता ऊंचे, मैं राज सात नीचे , भक्ति प्रभु तुम्हारी, चुंबक तरे ही खींचे ॥३।।
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