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लब्धिसूरि को अति सुखकारा, करा दो भवोदधि पारा;
हमरे सब प्रभु कर्म हटा दे, शक्ति तूं देगा, मुक्ति तूं देगा .. सेवा || ३ ||
(१२)
शिवगंज मंडन श्री आदिनाथ जिन स्तवन
आदि जिणंद भजके, करम जड़ जाइना
छोड़ माया प्रभु संयम पाया, सहस वरस इसमें दिल डाया; यथाख्यात चारित्र सुहायां ज्ञान दशा सजके, करम जड़ जारना .. आदि || १ || केवलज्ञानको जिनजी पाया, एक समयमें सब ही दिखाया ;
नर सुरासुरपति गुण गाया, समसरण रचके, करम जड़ जारना .. आदि ॥२॥ देवाधिदेव मेरे नाथ सोहंदा, हरे भविकजन करमका फंदा ;
आपे जन को अंमद आनंदा, पार होना नम के, करम जड़ जारना.. आदि ||३|| माता मरुदेवा दर्श को आये, दर्शन से शिवपदवी पाये,
सादि अनंती स्थिति हाये, श्री जिनगुण ग्रहके, करम जड़ जारना ..आदि ||४|| आत्म कमल में जो जिन ध्यावे, लब्धिसूरि निज कर्म खपावे; लाख चोरासी फेरा मिटावे, गुणी के गुण रटके, करम जड़ जारना.. आदि ॥५॥ (१३)
पोकरण (फलौधी) श्री आदिनाथ जिन स्तवन
आदिनाथ भगवान तोरी सेवा में लागु नाभिकुल नभ चन्द्रमा सोहे,
भ्रमण मिटाय, तोरी सेवा में लागुं ॥ १ ॥ सहस्र वर्ष प्रभु तप अति तपीया, केवल जगाय, तोरी सेवा में लागं ||२|| भविजन का सब पाप निवारा ;
देशना सुनाय, तोरी सेवा में लागुं || ३ || तीरथ स्थापी समकित आपी ;
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सुगति मुगति मिलाय, तोरी सेवा में लागुं ॥४॥.. आत्म-कमलमें लब्धि लहेरो
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