________________
८८
८
)
ऐज्ञान वाले ज्ञानी, तुम ज्ञान मुझ को देना, आतम दीपक की ज्योति, हरदम जगाये रहना ; लब्धि को ज्युं कमल है, निर्लेप तो करुंगा ॥३॥
(१९) फलौधी मंडन श्री शान्तिनाथ जिन स्तवन श्री शान्तिजिणंद की सुन्दर मूरती, मन को मोहे रे, मन को मोहे रे, मेरे तन मन को मोहे रे ... (अंचली)
____काने कुंडल माथु मुगट, रत्न आभूषण सोहे रे, नयनानन्द निरखतां लाधे, सुरनर मन मोहे हे, मेरे मन को मोहे रे ॥१॥
चक्रवर्ती की ऋद्धि छोडी, त्याग प्रभुए लीनो रे, संजम सुन्दर भाव धरी, केवल रस भीनो रे, मेरे मन को मोहे रे ॥२॥
____समोसरण में वाणी सुना के, भविजन को बहु तारा रे, संयम दान दिया जिनवर ने किया भव से किनारा रे, मेरे मन को ।।३।।
शैलेशी प्रभु ध्यान धरी ने, अडग चित्त दीनो रे, सकल अधाती क्षय करीने, शिव मारग लीनो रे, मेरे मन को मोहे रे ॥४॥
आत्म-कलम में ध्यान धरं प्रभु, नित्य-नित्य मन में तोरा रे, फलौधी नगर में लब्धिसूरि का, तोड करमा का घेरा मेरे मन को ।।५।।
(२०) (बड़ौदा) छांणी मंडन श्री कुन्थुनाथ जिन स्तवन कुन्थुजिन मेरी भव भ्रमणा, मिटा दोगे तो क्या होगा? (अंचली)
चोरासी लाख योनि में, प्रभु मैं नित्य रुलता हूं ; दयालु ! दास को तेरे, बचालोगे तो क्या होगा? कुन्थु ॥१॥
घटा धन मोह की आइ, छटा अन्धेर की छाई ; प्रकाशी ज्ञान वायु से, हटा दोगे तो क्या होगा? कुन्थु ।।२।।
अहो प्रभु नामका तेरे, सहारा निश दिन चाहुं समी प्रेम अन्तरका, विकासोगे तो क्या होगा? कुन्थु ॥३॥
नहिं मुझे काम सोने का, नहिं चांदी पसन्द मुझको ;
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org