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देव असुर प्रभु तिर्यंच तारे, तारे है नर और नार .. पद्मप्रभ ॥४॥ जड़ को दुःख की जड़ बताइ, चेतन बताया श्रीकार .. पद्मप्रभ ॥५॥ नाडोल मंडन पद्म नेमीश्वर, आदि जिणंद जयकार .. पद्मप्रभ ॥६॥ आत्म कमल में ध्यान तुम्हारा, लब्धिसूरि सुखकार .. पद्मप्रभ ॥७॥
(५) श्री चंद्रप्रभुजिन स्तवन चंदाप्रभुजी प्यारा मुझको दिया सहारा तुमे कर्म कष्ट वारा, उसने हमें है मारा, ..चंदा ।।१।।
मैं त्राहि त्राहि करता, चरणों में तेरे पड़ता, क्यों नहि दुःखों को हरता, महामोह से हुं मरता ..चंदा ॥२॥
___ करुणा समुद्र तुं है, नहीं तुझ से कोई आला मुझ मन बना है पक्षी, तुम गणो है माला ..चंदा ॥३॥
नरकादिको में कला, तुम नाम को जो भूला. उसके बिना सहारे, पाया है दु:ख अमूला ..चंदा ।।४।।
अब पुण्य वायु वाया, करमे विवर दिखाया. सम्यक्त्व चित्त धारा, तब पाया तुम देदारा ..चंदा ॥५॥
आत्म-कमल दिनेश्वर, दुर्लभ प्रभु जिनेश्वर ; ..' निज शक्ति संपदा दो, शिशु लब्धि को बचालो ..चंदा ॥६॥
___ मरुदेवी मात जात ! करो पार नैया मोरी
रह्यो भव समुद्रे भटकी, विकट गिरि में अटकी ; कों रहे हैं पटकी, आशा जीवन की थोरी .. मरुदेवी ॥१॥
प्रथम जिणंद राया, भिक्षुक प्रथम कहाया : भये प्रथम मुनीश्वर, हुए धर्म युग धोरी .. मरुदेवी ॥२॥
प्रभु सिद्धगिरि राजे, अद्भुत बिबं छाजे ; .. शिव दान को बिराजे, कर्मों की बेडी तोरी .. मरुदेवी ॥३।।
दो कोटि सिद्धि पाया, नमि विनमि राया,
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