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लब्धि गुरु कृपा प्रसादी चौबीस तीर्थंकर भगवान् के चौबीस स्तवन
श्री आदि जिन स्तवन ऋषभ जिन ! सुन लियो भगवान, अरज तुमसे गुजारुं हूं .
लगाकर कर्म ने घेरा, योनि लख वेद वसु फेरा ; जन्म मरणों की धारा में, हा हा ! क्या कष्ट धारूं हूं ॥१॥ श्वासोश्वास एक में जिनजी, सत्तर मरणों जनम लिया ; गति निगोद विकारों में, अनन्ता काल हारुं हूं ॥२॥
नरक दुःख वेदना भारी, निकलने की नहीं बारी ; शरण वहां है नहीं किसी की, प्रभु ये सच पुकार हूं ।।३।।
गति तिर्यंच की पामी, जहां नहीं दुःख की खामी ; जबी दुःख से चक्कर आवे, नहीं आंखों से भालुं हूं ॥४॥ मुझे ऐसा करो उपकृत, होउं मैं जिससे निर्मल हुन् ; अठ्ठावीस लब्धि को पाइ, मोक्षलक्ष्मी निहालुं हूं ।।५।।
(२) इन्दौर मंडन श्री अजितनाथ जिन स्तवन अजित जिणंद सुखधाम, जपी ले सुखकारियां, जपी ले सुखकारियां.
मालवदेशे दीपे मनोहर, दीपे मनोहर
इन्दोर मन्दिर सार ... जपी ले ॥१॥ नगरी अयोध्या में प्रभु जन्मे, में प्रभु जन्में ; ___ त्याग दिया संसार ...जपी ले ॥२॥ संजम धर प्रभु केवल पाया, केवल पाया ; उपदेश दिया मनोहर - जपी ले ॥३॥
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