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ने हमारे धार्मिक अध्यापक प्रकाशचंद जी को इशारा कर बुलाया और थोड़ी देर बाद हम दो-तीन छात्र रावलमल के साथ आचार्यश्री के पास आ गए। आचार्यश्री ने रावलमल को स्पर्श कर पूछा- क्यों तुम्हें 'अजितशांति' आती है न। रावलमल ने सिर हिलाकर स्वीकृति दी फिर पूज्यश्री ने कहा बोलो भई, घबराओ मत। बस फिर क्या था रावलमल ने सहसा आचार्यश्री का चरण स्पर्श किया और उसके मुंह से निकल पड़े शब्द अजि अं जिअ ..... । सस्वर पाठ से पूर्ण शांति थीमैं देख रहा था।
आचार्यश्री, रावलमल को स्पर्श किए हैं जब उसने, इक्खाग विदेह... .की गाथा बोली । आचार्यश्री उसके मस्तक पर हाथ फेर रहे थे।
हम सभी छात्र हर्ष विभोर हो उठे। प्रतिक्रमण के बाद मास्टर श्यामजी भाई ने रावलमल के साथ हम सबको गले लगाया कि विद्यालय का उसने मान बढ़ाया। तीसरे दिन प्रवचन में आचार्यश्री ने ओसियां के छात्रों, अध्यापकों की प्रशंसा की। संघ के लोगों ने हम छात्रों का बहुमान किया पालीताणा से विदा लेने जब हम आचार्य महाराज के पास गए तो बड़े प्रेम से कहा "समय व्यर्थ न गंवाना" । रावलमल के प्रति उनका अगाध स्नेह देख ईर्ष्या थी मन में" किन्तु उनके निस्पृह व्यक्तित्व ने हमें अंतर में अपने स्वभाव से परिचित होने की प्रेरणा दी। तब से आज तक वह दृश्य मैं नहीं भूल सका। इस घटना के बाद मैं पूज्यश्री का रागी बनता गया और उनके हर चातुर्मास में जाता रहा अंतिम क्षणों तक। आज उनकी कृपा अवर्णनीय है मेरे लिए। पू. गुरुदेव के चरणों में विनम्र श्रद्धांजलि |
लब्धि अनन से निकल, जिनवाणी बढ़ चली जिस घड़ी। अम्बर से उस समय, सुमन धार चल पड़ी । ।
थे । ।
कोटि कोटि दृग सजल, लब्धि की ओर अड़े थे। हलचल कहीं न दिखी, सभी निस्तब्ध खड़े जन हृदय में प्रवेश, मैत्री भाव की पवित्रता भाषा की भव्य झलक से, अहिंसा स्थापित कर ।।
पर ।
श्रद्धा ज्योति
पू० आचार्य देव श्रीमद् लब्धि सूरीश्वर जी निस्पृह आचार्य एवं श्रद्धा के
• काका कालेलकर
ज्योति थे।
विठ्ठलराव सहस्त्रबुद्धे.
महान् अन्वेषक
आचार्य श्रीमद् लब्धि सूरीश्वर जी को मैंने सदैव एक श्रेष्ठ मनुष्य,
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