________________
के मास्टर श्यामजी भाई ने मुख्याध्यापक को सूचना भेजी कि ओसियां मंडली को पालीताणा आना है। निश्चित समय हम पालीताणा आए। पर्युषण पर्व का समय था। आरीसा भवन में मंडली को रात्रि भक्ति-भावना की रचना का दायित्व सौंपा गया था। वहां विराजित पूज्य आचार्य श्रीमद् लब्धिसूरि जी म. के दर्शनार्थ सहपाठी श्री रावलमल जैन के साथ गए। पू. उपाध्याय श्री जयंत विजय जी म. ने हम छात्रों से वार्ता की। रावलमल जी से पूर्व परिचित होने का लाभ यह हुआ कि पू. उपाध्याय जी ने तुरंत पू.आचार्य श्री के दर्शन का लाभ दिलाया। भाई रावलमल को जिस स्नेह से पू. आचार्यश्री ने स्पर्श किया उसे देख हम मुग्ध थे। छोटेछोटे हम छात्र क्या समझते। उन्होंने रावलमल से धार्मिक अभ्यास की प्रगति बावत पूछताछ की। पंचप्रतिक्रमण की जानकारी देते ही आदेश दिया कि कल सांवत्सरिक प्रतिक्रमण में तुम्हें (रावलमल को) 'अजितशांति' बोलना है। पूज्यश्री ने फिर क्रम से हम सभी छात्रों से जानकारी ली और योग्य मार्गदर्शन किया। रात्रि में ओसियां मण्डली का कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ। मंडली ने “आव्यो दादाने दरबार'' पर भक्ति नृत्य प्रस्तुत किया। दर्शक श्रोताओं से मंडली को अधिकतम सराहना मिली इससे कहीं अधिक जब मास्टर श्यामजी भाई ने हमारे संगीत मास्टर बाबूलाल जी को आकर कहा कि भक्ति के बाद सभी छात्र आचार्यश्री के पास जायेंगे। रात्रि श्यामजी भाई के साथ हम सब पू. आचार्यश्री के पास गये थे। आचार्यश्री ने “आव्यो दादाने दरबार" गीत गाने को कहा। प्रकाशचंद मुथा ने गीत प्रारंभ किया जब गीत गाया जाने लगा तब स्वयं आचार्यश्री मंडली के साथ गीत दुहराने लगेआचार्यश्री पूर्ण लीन थे एक-एक अक्षर के साथ। पूज्य उपाध्याय जयंत विजय जी ने हमें बताया कि यह गीत आचार्य महाराज ने लिखी है तो हमारे हर्ष का अंत नहीं था। वह दृश्य आज भी ताजा है। दूसरे दिन सांवत्सरिक प्रतिक्रमण के लिए हम इकट्ठे हुए। आचार्यश्री ने मंडली के छात्रों को अपने पीछे बिठाया आचार्य भगवंत की हम छात्रों के प्रति कृपा देख हम हर्षित थे। भीड़ भरे मंडप में प्रतिक्रमण प्रारंभ हुआ। साधु महाराज के साथ पहली बार प्रतिक्रमण का अवसर था। हमारे धार्मिक अध्यापक श्री प्रकाश चंद्र जी जैन हमें समझाते जा रहा थे।
प्रतिक्रमण के दौरान 'अजित-शांति' बोलने का अवसर आया। आचार्यश्री ने ऊंची आवाज में कहा-“मेरा विद्यार्थी रावलमल ‘अजितशांति', बोलेगा।" हम कानाफूसी करने लगे। रावलमल का चेहरा घबराया हुआ था उसके मुंह से बोल ही नहीं निकल रहे थे। आचार्यश्री ने कहा "रावलमल, 'अजित-शांति' बोलो"। रावलमल बिल्कुल चुप विशाल जन समुदाय को वह देख रहा था। आचार्यश्री
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org