________________
४२ कहा कि योगी पुरुष का व्यक्तित्व ज्ञान, दर्शन, चारित्र एवं तप के समन्वय से ही खिलता है। योगी पुरुषों के दर्शन से पुण्य प्राप्त हो जाता है। उनके व्यक्तित्व में इतना चुम्बकीय प्रभाव होता है कि उनके पास बैठने मात्र से आनंद की अनुभूति होती है। साधु पुरुष यदि चुप हैं तो भी उसमें संदेश है। यदि वह बोलते हैं तो भी उसमें संदेश रहते हैं। महाराज लब्धिसूरि का आदर्श था कि प्रत्येक आत्मा में सद्गुण और दुगुर्ण दोनों व्याप्त है। हमें सिर्फ सद्गुण को आत्मसात करना चाहिए। सब गुण कहीं नहीं है। सबमें कुछ न कुछ दोष है। लेकिन प्रयास करें। प्रत्येक मनुष्य में परमात्मा के तत्व हैं। अच्छे गुणों को प्राप्त कर हम परमात्व को प्राप्त कर सकते हैं।
कोयल और कुत्ते का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए उन्होंने कहा कि यह मनुष्य मात्र पर निर्भर है कि वह कोयल का गुण प्राप्त करता है या कुत्ते का आचरण करता है, उन्होंने मानव को खिलौना और मन को पालने की संज्ञा दी। हर मानव में निराशा भी है। बम्बई के लोकल ट्रेन का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि ट्रेन में चढ़ने वाले हर व्यक्ति सहारे के लिए डण्डे को थामे रहते हैं इसी तरह हर आदमी को सहारा चाहिए। यह सहारा योगी पुरुष के सानिध्य में प्राप्त होता है।
इस संबंध में चार्ली चैपलिन का उल्लेख करते हुए उन्होंने बताया कि सारे जगह को हंसाने वाला वह विख्यात् कलाकार भी अंदर से कितना दुःखी था। महाराज साहब ने जब उनसे पूछा कि तुम सारे जग को हंसाते हो लेकिन यदि तुम्हारे अंदर का कोई दुःख हो तो वह मुझसे बेझिझक कहो। आचार्यश्री ने बताया कि किस तरह चार्ली यह सुनकर महाराज साहब की गोद में फूटफूट कर रोया?
उन्होंने कहा कि मीठे वचन मित्र के समान होते हैं मन को ठंडक प्रदान करते हैं। यदि कोई व्यक्ति अपनी बात कहना चाहता है तो उससे करीब बुलाकर ध्यान व सरलता से सुनो। सामने वाले की आधी समस्या यूं ही समाप्त हो जाती है। एक दूसरे के विचारों को तन्मय होकर सुनने से ही यह बोध होता है कि इसमें क्या त्रुटि है किसमें क्या खूबी है। दूसरों को जानने समझने से ही निकटता आती है, मित्रता आती है। उन्होंने ८ सौ साल पुराने संस्कृत ग्रंथ के उद्घाटन प्रसंग का उल्लेख करते हुए बताया कि महापुरुष कितने विनम्र होते हैं? उन्होंने बताया कि गुरुदेव महाराज ने जब तत्कालीन उपराष्ट्रपति डॉ० राधाकृष्णन को ग्रंथ के उद्घाटन के लिए आमंत्रण हेतु मात्र एक पत्र लिखा तब किस तरह उपराष्ट्रपति जी विनम्रतापूर्वक उद्घाटन समारोह में पहुंचे और गुरुदेव का आशीर्वाद प्राप्त किया।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org