Book Title: Sramana 2000 07
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 47
________________ समाज को साम्प्रदायिकता से बचाना होगा श्री लब्धिसरि पुण्यतिथि महोत्सव के अवसर पर आचार्य राजयशसरि का संदेश श्री उवसग्गहर पार्श्व तीर्थ के तपोभूमि में चैतन्यता के शिखर महापुरुष, अध्यात्म के अविरल ऊर्जाकार, आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय लब्धिसूरीश्वर जी म० सा० को उनकी ३४ वीं पुण्य तिथि के अवसर पर हजारों श्रद्धालुओं ने कृतज्ञताभरी श्रद्धा-सुमन समर्पित करते वंदन किया। महान् आचार्य की सान्निध्यतामें ‘गुणानुवाद महोत्सव' के रूप में पुण्य तिथि मनाई गई। सुविज्ञ समाजसेवी डॉ. ज्ञानचंद जैन ने श्रद्धालुओं की ओर से श्री चरणों में पुष्पांजलि अर्पित की। पू. मुनिश्री वीतरागयशविजय जी ने लब्धि गुरुदेव की शासन प्रभावना और पू. मुनिश्री विश्रुतयश विजय जी ने गुरुदेव की अहिंसा के कार्यों की विशद् व्याख्या की। पू. मुनि श्री नंदीयशविजय जी ने लब्धि गुरुदेव का अविरल वात्सल्य मूर्तिवंत निरूपित करते हुए बेजोड़ शासन प्रभावक, परोपकारी गुरुभगवंत की कृपाओं को स्मरण किया और कहा कि वे वचन सिद्ध योगी महापुरुष थे। इनकी महिमा, इनकी गरिमा अविराम प्रवाहित है। लब्धि गुरुदेव ने पंजाब को अहिंसा का दिव्य संदेश सुनाया। समाज को साम्प्रदायिकता से बचाना होगा आत्मोद्धार के ओजस्वी प्रेरक. तीर्थप्रतिष्ठाचार्य श्री राजयशसूरीश्वर जी म. सा. ने 'गुणानुवाद महोत्सव' को संबोधित करते हुए जनमानस को सचेत किया कि आज जगह-जगह साम्प्रदायिकता का जहर तिल-तिलकर आत्मोन्नति के सौंदर्य को नष्ट करके फैलाया जा रहा है। समाज पर हावी हो रहे मुट्ठी भर लोग धर्म के नाम पर अलगाव का तानाबाना बुनते हैं, कहीं मंदिर का विवाद फैलाया जाता है तो कहीं मच्छवाद को लेकर परस्पर दूरियाँ बढ़ाई जाती हैं। आज समाज को इस साम्प्रदायिकता से बचाना होगा। गुरुदेव लब्धिसूरि को महान् योगी बताते हुए उन्होंने कहा कि वे अपने पीछे श्रावक-श्राविकाओं, साधु-साध्वियों की महान् परम्परा छोड़ गए हैं। उनका संदेश था कि सभी धर्म एक हैं। व्यक्ति चाहे किसी भी धर्म का हो झुठ बोलने की प्रवृत्ति हर जगह पाई गई है। इस अधर्म को दूर करने के तरीके हर धर्म में बताए गए हैं। सबके तरीके अलग हैं लेकिन काम एक है। अत: सबका धर्म भी एक है। मूलत: आत्मा को कर्म रहित बनाना ही धर्म है। आचार्य राजयशसूरीश्वर महाराज ने गुरुदेव लब्धिसूरि के अंतिम निर्वाण प्रसंग का भावपूर्ण वर्णन करते हुए बताया कि वृद्धों की सेवाओं का अवसर कभी गंवाना नहीं चाहिए। ऐसे मौके बहुत कम आते हैं। इस संबंध में उन्होंने एक दोहा उद्धृत किया। जब हम पैदा हुए जग हंसत तुम रोए, ऐसी करनी कर चलो, तुम हंसत जगत रोए।' उन्होंने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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