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वही ब्राह्मण है। ये लोग श्रेष्ठ प्रयोजन के लिए भाव युक्त होकर आये हैं। ये इस समय तो ब्राह्मण हैं। उनका समुचित सत्कार होना चाहिए।
__ आचार्यश्री की विशालता से सभी गद्गद् थे। किसानों के साथ आचार्यश्री : आचार्यश्री की अनेक विविधताओं में उनकी मिलन-सारिता का गुण असाधारणता लिए हुए था। संवत् १९९१ की बात है आचार्यश्री बीकानेर की ओर प्रयाण कर रहे थे। रास्ते में ग्रामवासियों का एक दल मिला जो आपस में भगवान् की निंदा कर रहे थे, किसी को कुछ किसी को कुछ देने के लिए लोग भगवान् को पक्षपाती ठहरा रहे थे। आचार्य श्री ने भी इनकी बातें सुनी। वे हंसते हुए उन्हें साथ ले आगे बढ़े। गांव के पास ही एक बगीचा मिला जिसमें कई प्रकार के फूल थे जिनसे खुशबु आ रही थी वहीं उससे लगा एक खेत था जिसकी फसल से बदबू आ रही थी। आचार्यश्री ने कहा जमीन बहुत बुरी है। किसी को क्या, किसी को क्या देती है, उसका पक्षपात देखा। लोग बोले- नहीं, यह धरती का नहीं बोने वालों के कृत्यों का फल है।
आचार्यश्री ने हंसते हुए कहा-" मनुष्य का कर्म भी एक प्रकार का खेत है उसमें जो जैसा बोता है वह वैसा काटता है।" अपूर्व सहनशीलता : आचार्यश्री लब्धिसूरि जी में गजब की सहनशीलता थी भले ही वे शाररिक कष्ट से भी पीड़ित क्यों न हों। संवत् १९९२ की बात है सादड़ी में चतुर्मास था। पर्युषणा के पूर्व उन्हें एक फोड़े ने आ घेरा और धीरेधीरे बढ़ता ही गया किन्तु आचार्यश्री ने उसकी परवाह नहीं की और उनकी दैनिक प्रवृत्तियां चलती ही रहीं। भक्तों ने डाक्टरों द्वारा आचार्यश्री से कहलवाया कि उपचार और आप्रेशन की इजाजत दे दीजिए। आचार्यश्री ने हंसते हुए कहा " अशुभ कर्मों के नष्ट होते ही सब ठीक हो जाएगा चिन्ता क्यों करते हो। जल्दी क्यों ठीक नहीं होता, यह तो आर्तध्यान है।" उन्होंने किसी प्रकार के उपचार को स्वीकार नहीं किया। एक सुबह, व्याख्यान पीठ से जैसे ही आचार्यश्री अलग हुए, फोड़े का अंत हुआ और स्वास्थ्य लाभ उन्हें मिला।
आचार्यश्री लब्धिसूरिजी सहिष्णुता, सहयोग, सहृदयता, स्नेह, सत्कार, सद्भावना और साधार्मिक भक्ति के प्रोत्साहक थे, प्रेरक थे। बात सन् १९५३५४ की है। श्री शत्रुजय गिरिराज की यात्रा से आचार्यश्री वापस लौट रहे थे। तलेटी के पास गिरिराज के यात्रालुओं को भाता दिया जाता है। कुछ लोगों में विवाद चल रहा था। एक भाई ने भाता की जोरदार शब्दों में निंदा कर दी। ये शब्द पास से ही जा रहे आचार्यश्री ने भी सुनी। आचार्यश्री ने विवाद ग्रस्त लोगों को बुलवाया और उन्हें शांत कर उपाश्रय आने को कहा। दूसरे दिन आरीसा
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