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२७ का भारतीय संस्कृति की पावनता पर कविता लिखकर भेंट की। फिर तो अनके साहित्यकों ने मुनिश्री के दर्शन किए और उनकी कवित्व शक्ति का परिचय पाया। इतिहास की पुनरावृत्ति युवक का वैराग्य : जैन इतिहास में ऐसे अनेक प्रसंग आए हैं जब तत्वज्ञान एवं धर्मबोध सूनकर अनेक आत्माओं ने सांसारिक सुखों का त्याग कर दिया और स्व-पर कल्याण मार्ग प्रशस्त किया। संयम की सफल आराधना द्वारा संयम धर्म के विकास में उन्नत बनकर प्रेरक गाथाएं जोड़ी हैं। इसी श्रृंखला में ३० वर्षीय मुनिश्री लब्धिविजय जी के हृदयवेधक उपदेश सुनकर रामा थियेटर, दिल्ली की प्रवचन सभा में दौलत राम नामक युवक ने निवेदन किया कि “ पूज्य गुरुदेव श्री, मुझे भगवती दीक्षा प्रदान कीजिए और अपने चरणों की सेवा से मेरा उद्धार कीजिए। सभी स्तब्ध रह गए। हजारों नेत्र अपलक निहार रहे थे उस युवक को, जिसके हृदय से वैराग का अंकुर भावना रूप जल से सिंचित हो प्रवाहित हो गया। सभा मुनिश्री की अमोध देशना के जय जयकार से गुंजित हो उठी। मुनिश्री ने युवक के हृदय में नवपल्लवित आकांक्षा का अध्ययन किया और कुछ समय बाद दीक्षार्थी को परिपक्वता के साथ सिकन्द्राबाद (आग्रा) में धूमधाम से दीक्षा प्रदान की और उनका नाम श्री लक्ष्मण विजय रखा गया जो आगे चलकर आचार्यवर्य श्रीविजय लक्ष्मण सूरि के नाम से भव्यतम शासन प्रभावना से विख्यात हुए।
सच्चे धर्म प्राण मुनि के प्रवचनों से प्रभावित अनेक आत्माओं ने उनसे दीक्षा अंगीकार की उनमें आचार्यश्री भुवनतिलक सूरि, आचार्यश्री जयंतसूरि, निपुणविजय जी, आचार्यश्री नवीनसूरि जी, प्रवीणविजय जी, शुभविजय जी, नंदनविजय जी, योगीन्द्रविजय जी, महिमाविजय जी, पदमविजय जी, आचार्यश्री विक्रमसूरि, रत्नाकरविजय जी, नेमविजय जी आदि के नाम विशेष उल्लेखनीय रहे हैं। जीवन भाई जब जयंत विजय बने : डभोई में जीवन भाई फूलचंद के विवाह की तैयारी चल रही थी। वैवाहिक गीत प्रारंभ हो चुका था। इन्ही दिनों पृ० मनिश्री लब्धिविजय जी म. का चातुर्मासिक प्रवचन का प्रवाह संख्या बद्ध लोगों को आकर्षित किये हुए था। पूज्य श्री के ओजस्वी वाणी से प्रभावित जीवन भाई ने मनुष्य जीवन की सार्थकता हेतु याचना निवेदित किया। पूज्यश्री ने संयम की कठिनता, व्रत पालन की दुष्करता और बाईस परिषहों से जीवन भाई को अवगत कराया। जीवन भाई तो वैराग्य रंग में रंग गए थे। जीवन भाई की मातृश्री बहुत वृद्ध एवं धर्मपरायण थीं। पितृ सुख से तो वे बाल्यावस्था से ही वंचित
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